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मोक्षशास्त्र
(१९)
सम्यग्दृष्टि जीव अपनेको सम्यक्त्व प्रगट होनेकी बात श्रुतज्ञानके द्वारा बरावर जानता है ।
१३४.
प्रश्नः -- अपनेको सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ है यह किस ज्ञानके द्वारा मालूम होता है ?
उत्तर:- - चौथे गुणस्थानमे भावश्रुतज्ञान होता है उससे सम्यग्दृष्टि को सम्यग्दर्शनके प्रगट होनेकी बात मालूम हो जाती है । यदि उस ज्ञानके द्वारा खबर नहीं होती ऐसा माना जाय तो उस श्रुतज्ञानको सम्यक् [ यथार्थ ] कैसे कहा जा सकेगा । यदि अपने को अपने सम्यग्दर्शनको खबर न होती हो तो उसमें और मिथ्यादृष्टि अज्ञानीमें क्या अन्तर रहा ?
प्रश्न- यहाँ आपने कहा है कि सम्यग्दर्शन श्रुतज्ञानके द्वारा जाना जाता है, किन्तु पंचाध्यायी अध्याय २ में उसे अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान गोचर कहा है । वे श्लोक निम्नप्रकार है । ? -
सम्यक्त्वं वस्तुतः सूक्ष्मं केवलज्ञानगोचरम् । गोचरं स्वावधिस्वतः पर्ययज्ञानयोर्द्वयो || ३७५ ॥
[ अर्थ – सम्यक्त्व वास्तव में सूक्ष्म है और केवलज्ञान गोचर है तथा अवधि और मनःपर्यय इन दोनोंके गोचर है । ] और अध्याय २ गाथा ३७६ में यह कहा है कि वे मति और श्रुतज्ञान गोचर नही हैं; और यहाँ आप कहते हैं कि सम्यक्दर्शन श्रुतज्ञानगोचर है, इसका क्या उत्तर है ?
उत्तरः- सम्यग्दर्शन मतिज्ञान और श्रुतज्ञानगोचर नही है इस - प्रकार जो ३७६ वीं गाथामें कहा है उसका अर्थ इतना ही है कि- सम्यग्दर्शन उस-उस ज्ञानका प्रत्यक्ष विषय नही है ऐसा समझना चाहिए । किन्तु इसका अर्थ यह नही है कि इस ज्ञानसे सम्यक्दर्शन किसी भी प्रकार से नही जाना जा सकता । इस सम्बन्ध में पंचाध्यायी अध्याय २ की ३७१ और ३७३ वी गाथा निम्नप्रकार है