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मोक्षशास्त्र
मिथ्यादृष्टि जीवको देव गुरु धर्मादिका श्रद्धान श्राभासमात्र होता है, उसके श्रद्धानमेंसे विपरीताभिनिवेशका प्रभाव नहीं हुआ है, और उसे व्यवहार सम्यक्त्व श्राभासमात्र है, इसलिये उसे जो देव, गुरु धर्म; नव तत्त्वादिका श्रद्धा है सो विपरीताभिनिवेशके प्रभाव के लिये कारण नहीं हुआ, और कारण हुए बिना उसमें [ सम्यग्दर्शनका ] उपचार संभवित नही होता, इसलिये उसके व्यवहार सम्यग्दर्शन भी संभव नही है, उसे व्यवहार सम्यक्त्व, मात्र नामनिक्षेपसे कहा जाता है [ मोक्षमार्ग प्रकाशक म० ९ पृष्ठ ४७६-४७७ देहलीका ]
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सम्यग्दर्शन के प्रगट करनेका उपाय
प्रश्न - सम्यग्दर्शनके प्रगट करनेका क्या उपाय है ? ( १ )
उत्तर- - आत्मा और परद्रव्य सर्वथा भिन्न हैं, एकका दूसरे में अत्यत प्रभाव है । एक द्रव्य, उसका कोई गुण या पर्याय दूसरे द्रव्यमें, उसके गुरणमें या उसकी पर्यायमे प्रवेश नही कर सकते, इसलिये एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कुछ भी नही कर सकता, ऐसी वस्तुस्थितिकी मर्यादा है | और फिर प्रत्येक द्रव्यमें अगुरुलघुत्त्व गुण है क्योकि वह सामान्यगुरण है । उस गुणके कारण कोई किसीका कुछ नही कर सकता । इसलिये आत्मा परद्रव्यका कुछ नही कर सकता, शरीरको हिला डुला नही सकता, द्रव्यकर्म या कोई भी परद्रव्य जीवको कभी हानि नही पहुँचा सकता,यह पहिले निश्चय करना चाहिये ।
इसप्रकार निश्चय करनेसे जगतके परपदार्थोके कर्तृत्वका जो अभिमान श्रात्मा के अनादिकालसे चला रहा है वह दोष मान्यतामेंसे और ज्ञानमेंसे दूर हो जाता है ।
शास्त्रोमें कहा गया है कि द्रव्यकर्म जीवके गुणोंका घात करते हैं, इसलिये कई लोग मानते हैं कि उन कर्मोंका उदय जीवके गुणोंका वास्तव