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________________ ११२ मोक्षशास्त्र ३- ज्ञानका विषय पदार्थ है इसलिये नयसे प्रतिपादित किये जानेवाले पदार्थको भी नय कहते है । यह अर्थनय है । आत्माके संबंध में इन सात नयोको श्रीमद्राजचन्द्रजीने निम्नलिखित चौदह प्रकारसे अवतरित किए हैं । वे साधकको उपयोगी होनेसे यहाँ अर्थ सहित दिये जाते है । १ - एवंभूत दृष्टिसे ऋजुसूत्र स्थिति कर = पूर्णता के लक्ष्यसे प्रारम्भ कर । २- ऋजुसूत्रदृष्टिसे एवंभूत स्थिति कर = साधकदृष्टिके द्वारा साध्य में स्थिति कर । ३ - नैगमदृष्टिसे एवंभूत प्राप्ति कर तू पूर्ण है ऐसी संकल्पदृष्टिसे पूर्णताको प्राप्त कर । ४- एवंभूतदृष्टिसे नंगम विशुद्ध कर = पूर्णदृष्टिसे अव्यक्त अंश विशुद्ध कर | ५- संग्रहदृष्टिसे एवंभूत हो = त्रैकालिक सत्दृष्टिसे पूर्णं शुद्ध पर्याय प्रगट कर । ६- एवंभूतदृष्टिसे संग्रह विशुद्ध कर = निश्चयदृष्टिसे सत्ताको विशुद्ध कर । ७- व्यवहारदृष्टिसे एवंभूत के प्रति जा= भेददृष्टि छोड़कर अभेदके प्रति जा । ८- एवंभूतदृष्टि से व्यवहार निवृत्ति कर = अभेददृष्टिसे भेदको निवृत्त कर । ९- शब्ददृष्टिसे एवंभूतके प्रति जा= शब्दके रहस्यभूत पदार्थ की दृष्टिसे पूर्णता के प्रति जा । १०- एवंभूतदृष्टिसे शब्द निर्विकल्प कर = निश्चयदृष्टिसे शब्दके रहस्य - भूत पदार्थ में निर्विकल्प हो ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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