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________________ ७७ अध्याय १ सूत्र १८ को 'सूघा'; किन्तु गुण-पर्याय द्रव्यसे भिन्न नहीं है इसलिये पदार्थका ज्ञान होता है । इन्द्रियोंका सम्बन्ध पदार्थके साथ होता है,। मात्र.गुण-पर्यायोंके साथ नहीं होता ॥ १७ ॥ अवग्रह ज्ञानमें विशेषता व्यंजनस्यावग्रहः ॥ १८ ॥ मर्थ-[व्यंजनस्य] अप्रगटरूप शब्दादि पदार्थोका [प्रवग्रहः] मात्र अवग्रह ज्ञान होता है-ईहादि तीन ज्ञान नहीं होते। टीका अवग्रहके दो भेद हैं-(१) व्यंजनावग्रह (२) अर्थावग्रह । व्यंजनावग्रह-अव्यक्त-अप्रगट पदार्थके अवग्रहको व्यंजनावग्रह कहते हैं। अर्थावग्रह-व्यक्त-प्रगट पदार्थके अवग्रहको अर्थावग्रह कहते हैं । अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रहके दृष्टांत (१) पुस्तकका शरीरकी चमड़ीसे स्पर्श हुआ तब ( उस वस्तुका ज्ञान प्रारंभ होने पर भी ) कुछ समय तक वह ज्ञान अपनेको प्रगट रूप नही होता, इसलिये जीवको उस पुस्तकका ज्ञान अव्यक्त-अप्रगट होनेसे उस ज्ञानको व्यंजनावग्रह कहा जाता है । (२) पुस्तक पर दृष्टि पड़ने पर पहिले जो ज्ञान प्रगटरूप होता है, वह व्यक्त अथवा प्रगट पदार्थका अवग्रह ( अर्थावग्रह ) कहलाता है। व्यंजनावग्रह चक्षु और मनके अतिरिक्त चार इन्द्रियोंके द्वारा होता है, व्यंजनावग्रहके बाद ज्ञान प्रगटरूप होता है उसे अर्थावग्रह कहते हैं। चक्षु और मनके द्वारा अर्थावग्रह होता है ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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