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अध्याय १ सूत्र १६
प्रश्न
- नेत्रज्ञानमें 'उक्त' विषय कैसे संभव है ?
उत्तर - किसी वस्तुको विस्तारपूर्वक सुन लिया हो और फिर वह देखनेमें आये तो उस समयका नेत्र ज्ञान 'उक्त ज्ञान' कहलाता है । इसीप्रकार श्री इन्द्रियके अतिरिक्त दूसरी इन्द्रियोंके द्वारा भी 'उक्त' का ज्ञान होता है ।
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प्रश्न- 'मुक्त' का ज्ञान पाँच इन्द्रियोके द्वारा कैसे होता है ? उत्तर - श्रोत्र इन्द्रियके अतिरिक्त चार इन्द्रियोंके द्वारा होनेवाला ज्ञान सदा श्रनुक्त होता है । श्रीर श्रोत्र इन्द्रियके द्वारा श्रनुक्तका ज्ञान कैसे होता है सो इसका स्पष्टीकरण पहिले उत्तरमे किया गया है ।
प्रश्न- अनिःसृत और अनुक्त पदार्थोके साथ श्रोत्र इत्यादि इंद्रियोंका संयोग होता हो यह हमे दिखाई नही देता, इसलिये हम उस संयोगको स्वीकार नही कर सकते ।
उत्तर - यह भी ठीक नहीं है; जैसे यदि कोई जन्मसे ही जमीनके भीतर रक्खा गया पुरुष किसी प्रकार बाहर निकले तो उसे घट पटादि समस्त पदार्थोका आभास होता है; किन्तु उसे जो 'यह घट है, यह पट है' इत्यादि विशेषज्ञान होता है वह उसे परके उपदेशसे ही होता है; वह स्वयं वैसा ज्ञान नही कर सकता, इसीप्रकार सूक्ष्म अवयवोके साथ जो इंद्रियोंका भिड़ना होता है और उससे अवग्रहादि ज्ञान होता है वह विशेष ज्ञान भी वीतरागके उपदेशसे ही जाना जाता है; अपने भीतर ऐसी शक्ति नही है कि उसे स्वयं जान सकें; इसलिये केवलज्ञानीके उपदेशसे जब अनिःसृत और अनुक्त पदार्थोक ग्रवग्रह इत्यादि सिद्ध हैं तव उनका अभाव कभी नहीं कहा
जा सकता ।
प्रत्येक इन्द्रियके द्वारा होनेवाले इन बारह प्रकारके मतिज्ञानका स्पष्टीकरण |
१ - श्रोत्र इन्द्रियके द्वारा
बहु - एक-तत ( ताँतका शब्द ) वितत ( तालका शब्द ) धन