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मोक्षशास्त्र
प्रश्न- - क्या यह ठीक है न कि प्रस्तुत ज्ञेय पदार्थ हो तो उससे ज्ञान होता है ?
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उत्तर - यह ठीक नहीं है, यदि प्रस्तुत पदार्थ (ज्ञेय) और आत्मा इन दोनोंके मिलनेसे ज्ञान होता तो ज्ञाता और ज्ञेय इन दोनोंको ज्ञान होना चाहिये किन्तु ऐसा नही होता ।
( सर्वार्थसिद्धि पृष्ठ ३३२ )
यदि उपादान और निमित्त ये दो होकर एक कार्य करें तो उपादान और निमित्तकी स्वतंत्र सत्ता न रहे; उपादान निमित्तका कुछ नहीं करते और न निमित्त उपादानका कुछ करता है । प्रत्येक पदार्थं स्वतंत्र रूपसे अपने अपने काररणसे अपने लिए उपस्थित होते है, ऐसा नियम होनेसे अपनी योग्यतानुसार निमित्त - उपादान दोनोंके कार्यं स्वतन्त्र, पृथक् पृथक् होते हैं । यदि उपादान और निमित्त ये दोनों मिलकर काम करें तो दोनों उपादान हो जांय अर्थात् दोनोंकी एक सत्ता हो जाय किन्तु ऐसा नही होता ।
इस सम्बन्धमें ऐसा नियम है कि अपूर्ण ज्ञानका विकास जिस समय अपना व्यापार करता है उस समय उसके योग्य बाह्य पदार्थ श्रर्थात् इंद्रियां प्रकाश, ज्ञेय पदार्थ, गुरु, शास्त्र इत्यादि ( पर द्रव्य ) स्व स्व कारणसे ही उपस्थित होते हैं, ज्ञानको उनकी प्रतीक्षा नही करनी पड़ती । निमित्त नैमित्तिकका तथा उपादान निमित्तका ऐसा मेल होता है |
प्रश्न- - आप सम्यग्ज्ञानका फल अधिगम कहते हो किन्तु वह ( अधिगम ) तो ज्ञान ही है इसलिये ऐसा मालुम होता है कि सम्यग्ज्ञानका कुछ फल नही होता ।
उत्तर——सम्यग्ज्ञानका फल श्रानन्द ( संतोष ) उपेक्षा ( राग द्वेष रहितता ) और अज्ञानका नाश है । ( सर्वार्थ सिद्धि पृष्ठ ३३४) इससे यह सिद्ध होता है कि ज्ञान स्वसे ही होता है पर पदार्थसे नही होता ।