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मोक्षशास्त्र योग आदि चौदह मार्गणाओंमें किसजगह किस तरहका सम्यग्दर्शन होता है और किस तरहका नही ऐसा विशेष ज्ञान सत्से होता है, निर्देशसे ऐसा ज्ञान नही होता, यही सत् और निर्देशमें अन्तर है।
इस सूत्रमें सत् शब्दका प्रयोग किसलिये किया है ?
अनधिकृत पदार्थोका भी ज्ञान करा सकनेकी सत् शब्दकी सामर्थ्य है । यदि इस सूत्रमें सत् शब्दका प्रयोग न किया होता तो आगामी सूत्रमें सम्यग्दर्शन आदि तथा जीवादि सात तत्त्वोंके ही अस्तित्वका ज्ञान निर्देश शब्दके द्वारा होता और जीवके क्रोध मान आदि पर्याय तथा पुद्गलके वर्ण गंध आदि तथा घट पट आदि पर्याय (जिनका यह अधिकार नही है ) के अस्तित्वके अभावका ज्ञान होता इसलिये इस समय अनधिकृत पदार्थ जीव मे क्रोधादि तथा पुद्गलमें वर्णादिका ज्ञान करानेके लिये इस सूत्रमें सत् शब्दका प्रयोग किया है।
__ संख्या और विधानमें अंतर प्रकारकी गणनाको विधान कहते हैं और उस भेदकी गणनाको संख्या कहते हैं । जैसे सम्यग्दृष्टि तीन तरहके हैं (१) औपशमिक सम्यग्दृष्टि (२) क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि। 'संख्या' शब्दसे भेद गणनाका ज्ञान होता है कि उक्त तीन प्रकारके सम्यग्दृष्टियोमें औपशमिक सम्यग्दृष्टि कितने हैं क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि कितने है अथवा क्षायिक सम्यग्दृष्टि कितने हैं; भेदोंके गणनाकी विशेषताको बतलानेका जो कारण है उसे सख्या कहते हैं।
'विधान' शब्दमे मूलपदार्थके ही भेद ग्रहण किये हैं, इसीलिये भेदोंके अनेक तरहके मेदोको ग्रहण करनेके लिये संख्या शब्द का प्रयोग किया है।
'विधान' शब्दके कहनेसे भेद प्रभेद जाते हैं ऐसा माना जाय तो विगेप स्पष्टताके लिये संख्या शब्दका प्रयोग किया गया है ऐसा समझना चाहिये।