________________
२६
अध्याय १ सूत्र ६ soned knowledge It is a sort of a sight of a thing. You cannot doubt it's testimony. So long as there is doubt, there is no right belief. But doubt must not be suppressed, it must be destroyed. Things have not to be taken ontrust. They must be tested and tried by every one him-self, This sutra lays down the mode in which it can be done. It refers the inquirer to the first laws of thought and to the universal principles of all reasoning, that is to logic under the names of Praman and Naya (English Tatvarth Sutram, Page 15)
अर्थ-सम्यग्दर्शन अंधश्रद्धाके साथ एकरूप नही है उसका अधिकार आत्माके बाहर या स्वच्छंदी नही है। वह युक्तिपुरस्सर ज्ञानसहित होता है, उसका प्रकार वस्तुके दर्शन ( देखने ) समान है आप उसके साक्षीपनाकी शंका नही कर सकते जहाँ तक ( स्वस्वरूपकी ) शंका है वहाँ तक सच्ची मान्यता नही है। उस शंकाको दबाना नही चाहिये, किन्तु उसका नाश करना चाहिये। [किसीके] भरोसेपर वस्तुका ग्रहण नही किया जाता । प्रत्येकको स्वयं स्वतः उसकी परीक्षा करके उसके लिये यत्न करना चाहिये। वह कैसे हो सकता है, सो यह सूत्र बतलाता है। विचारकताके प्राथमिक नियम तथा समस्त युक्तिमान् विश्वके सिद्धान्तोको प्रमाण और नयका नाम' देकर उसका आश्रय लेनेके लिये सत्यशोधकको यह सूत्र सूचित करता है। [ अंग्रेजी तत्त्वार्थ सूत्र पृष्ठ १५ ]
(३) युक्ति
प्रमाण और नयकी युक्ति कहते है। सत्शास्त्रका ज्ञान आगमज्ञान है । आगममे वरिणत तत्त्वोंकी यथार्थता युक्ति द्वारा निश्चित किये बिना तत्त्वोंके भावोंका यथार्थ भास नही होता । इसलिये यहाँ युक्ति द्वारा निर्णय . करनेका कहा है।