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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
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मन्त्रोका बार-बार उच्चारण किसी सोते हुएको बार-बार जगाने के समान है । यह प्रक्रिया इसीके तुल्य है, जिस प्रकार किन्हीं दो स्थानोंके वीच विजलीका सम्बन्ध लगा दिया जाये । साधककी विचार-शक्ति स्विच - का काम करती है ओर मन्त्र शक्ति विद्युत् लहरका । जब मन्त्र सिद्ध हो जाता है तब आत्मिक शक्तिसे आकृष्ट देवता मान्त्रिकके समक्ष अपना आत्मार्पण कर देता है और उस देवताकी सारी शक्ति उस मान्त्रिक आ जाती है । सामान्य मन्त्रों के लिए नैतिकताको विशेष आवश्यकता नहीं है । साधारण साधक वीजमन्त्र और उनकी ध्वनियोंके घर्षणसे अपने भीतर आत्मिक शक्तिका प्रस्फुटन करता है । मन्त्रशास्त्र में इसी कारण मन्त्रोके अनेक भेद बताये गये हैं । प्रधान ये हैं- ( १ ) स्तम्भन ( २ ) मोहन (३) उच्चाटन ( ४ ) वश्याकर्पण ( ५ ) जृम्भण ( ६ ) विद्वेषण ( ७ ) मारण ( ८ ) शान्तिक और ( ९ ) पौष्टिक |
जिन ध्वनियोके वैज्ञानिक सन्निवेशके घर्षण द्वारा सर्प, व्याघ्र, सिंह आदि भयकर जन्तुमोको भूत, प्रेत, पिशाच आदि दैविक बाधाओोको, शत्रुसेना के माक्रमण तथा अन्य व्यक्तियो द्वारा किये जानेवाले कष्टोको दूर कर इनको जहाँ तहाँ निष्क्रिय कर स्तम्भित कर दिया जाये, उन ध्वनियोके सन्निवेशको स्तम्भन मन्त्र, जिन ध्वनियोके वैज्ञानिक सन्निवेशके घर्षण द्वारा किसीको मोहन कर दिया जाये उन ध्वनियोके सन्निवेशको मोहित मन्त्र; जिन ध्वनियोके सन्निवेशके घर्पण-द्वारा किसीका मन अस्थिर, उल्लासरहित एव निरुत्साहित होकर पदभ्रष्ट एव स्थानभ्रष्ट हो जाये, उन ध्वनियोके सन्निवेशको उच्चाटन मन्त्र, जिन ध्वनियो के सन्निवेशके घर्पण-द्वारा इच्छित वस्तु या व्यक्ति साधकके पास आ जाये - किसीका विपरीत मन भी साधकको अनुकूलता स्वीकार कर ले, उन ध्वनियोके सन्निवेशको वश्याकर्पण, जिन ध्वनियोके वैज्ञानिक सन्निवेशके घर्षण-द्वारा शत्रु, भूत, प्रेत, व्यन्तर साधकको साधना से भयत्रस्त हो जायें, काँपने लगें, उन घ्ननियोंके सन्निवेशको जृम्भण मन्त्र, जिन ध्वनिया के
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