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मगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन ८७ लु कामबीज, क्रों शक्तिबीज, ह स विपापहार बीज, श्री पृथ्वी बीज, स्वा वायुवीज, हा आकाशवोज, ह्रा मायावीज या त्रैलोक्यनाथ बीज, क्रो अकुशवीज, ज पाशवोन, फट् विसर्जनात्मक या चालन-दूरकरणार्थक, वौपट् पूजाग्रहण या आकर्पणार्थक, सवौषट् आमन्त्रणार्थक, ब्लू द्रावणवीज, क्लों आकर्पणबोज, ग्लौं स्तम्भन वीज, ह्रो महाशक्तिवाचक, वषट् आह्वानन वाचक, रं ज्वलनवाचक, क्ष्वी विपापहारवीज, ठ' चन्द्रबीज, घे घे ग्रहण. बीज, द्र विद्वेषणार्थक, रोषबीज, स्वाहा शान्ति और हवनवाचक, स्वघा पौष्टिक वाचक, नम शोधनवीज, ह गणनबीज, ह जानवीज, य विसर्जन या उच्चारण वाचक, नु विद्वेषणवीज, श्वी अमृतबीज, क्ष्वी भोगवीज, हूँ दण्डबीज, ख: स्वादनयोज, भौं महाशक्तिबीज, ह, ल्यू पिण्डबीज, क्ष्वों है मगल और सुखवोज, श्री कोतिबीज या कल्याणवीज, क्लीं धनवीज, या कुवरबीज, तीर्थकरके नामाक्षर शान्तिवीज, हो ऋद्धि और सिद्धिवोज, ह्रा ह्रीं ह्र. ह्रीं ह्र सर्वशान्ति, मागल्य, कल्याण, विघ्नविनाशक, सिद्धिदायक, म आकाशवीज, या धान्यबोज, आ सुखबीज या तेजोबोज, ई गुणवीज या तेजोबोज या वायुवीज, क्षा क्षों क्षधे वै क्षो क्षों क्ष सर्वरल्याण या मर्वगुद्धिबीज, व द्रवणबोज, यं मंगलवोज, म शोधनबोज, यं रक्षाबीज, झं गक्तिबीज और त थ दं कालुप्यनाशक, मगलवर्धक और सुखकारक बताया गया है। इन समस्त बीजाक्षरोको उत्तत्ति णमोकार मन्य तथा इस मन्त्री प्रतिपादित पवपरमेष्ठीफे नामाक्षर, तीर्थकर और यक्ष यक्षिणियोके नामाक्षरोपर-से हुई है । मन्त्रके तीन अग होते है, रूप, वौज और फल । जितने भी प्रकारके मन्य है, उनमें वीजरूप यह णमोकार मन्त्र या इससे निष्पन कोई सूक्ष्मतत्त्व रहता है । जिस प्रकार होम्योपैथिक दवामें दवाका अग जितना अल्ल होता जाता है, उतनी ही उसको शक्ति बढती जाती है और उसका चमत्कार दिखलाई पडने लगता है। इसी प्रकार इस णमोपार मन्त्रको सूक्ष्मीकारण-माग जितने भूधम बीजाक्षर अन्य मन्त्रोंमें निहित किये जाते है, उन मन्योकी उतनी ही शयित बढती जाती है।