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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
नियन्त्रण करता है। जिस मनुष्यके स्थायीभाव सुनियन्त्रित नहीं अथवा जिसके मनमे उच्चादर्शोके प्रति श्रद्धास्पद स्थायीभाव नहीं है, उसका व्यक्तित्व सुगठित तथा चरित्र सुन्दर नहीं हो सकता है । दृढ और सुन्दर चरित्र बनानेके लिए यह आवश्यक है कि मनुष्यके मनमे उच्चादर्भोके प्रति श्रद्धास्पद स्थायीभाव हो तथा उसके अन्य स्थायीभाव उसी स्थायीभावके द्वारा नियन्त्रित हो । स्थायीभाव ही मानवके अनेक प्रकारके विचारोके जनक होते हैं। इन्हीके द्वारा मानवकी समस्त क्रियाओंका सचालन होता है। उच्च आदर्शजन्य स्थायीभाव और विवेक इन दोनोमे घनिष्ठ सम्बन्ध है । कभी-कभी विवेकको छोडकर स्थायी भावोके अनुसार ही जीवन क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं। जैसे विवेकके मना करनेपर भी श्रद्धावश धार्मिक प्राचीन कृत्योंमे प्रवृत्तिका होना तथा किसीसे झगडा हो जानेपर उसकी झूठी निन्दा सुननेकी प्रवृत्तिका होना। इन कृत्योमे विवेक साथ नहीं है. केवल स्थायी भाव ही कार्य कर रहा है। विवेक मानवकी क्रियाओंको रोक या मोड सकता है, उससे स्वयं क्रियायोके मचालनको शक्ति नहीं है। अतएव आचरणको परिमाजिन और विकसित फरनेके लिए केवल विवेक प्राप्त करना ही मावश्यक नहीं है, बल्कि मावश्यक्त है उसके स्थायी भावको योग्य और दृढ बनाना। ___व्यक्तिके मनमें जबतक किनी मुन्दर मादर्शके प्रति या किसी महान् व्यक्तिके प्रति श्रद्धा और प्रेमके स्थायीभाव नहीं तबतक दुराचारसे हटकर सदाचारमे उनकी प्रवृत्ति नहीं हो सकती है। ज्ञानकी मात्र जानकारीसे दुराचार नहीं रोका जा सकता है, इसके लिए उच्च शदशंके प्रति प्रदा भावनाका होना अनिवार्य है । णमोकार मन्त्र ऐसा पवित्र उच्च आदर्श है, जिससे सुदृढ म्यायीभावी उत्सति होनी है। यत णमोकारमन्त्रका मनपर जब बार-बार प्रभाव पडेगा अर्थात् शविक समय तक इस महामन्त्रकी भावना जब गनमें बनी रहेगी तर स्थायी भावो परिकार हो ही जायेगा योर गे हो नियन्त्रित स्थायीभाव मानवो परियके विकासमे गहायया होंगे।