________________
मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
णमोकार मन्त्र
है । मनोविज्ञान मानता है कि मानवकी दृश्य क्रियाएँ उनके चेतन मनमें और अदृश्य क्रियाएँ अचेतन मन में होती हैं । मनकी इन दोनों क्रियाओको मनोवृत्ति कहा जाता है । यो तो साधारणत. मनोविज्ञान और मनोवृत्ति शब्द चेतन मनकी क्रियाके बोधके लिए प्रयुक्त होता है । प्रत्येक मनोवृत्तिके तीन पहलू हैंज्ञानात्मक, वेदनात्मक और क्रियात्मक । मनोवृत्तिके ये तीनों पहलू एकदूसरेसे अलग नही किये जा सकते हैं। मनुष्यको जो कुछ ज्ञान होता है, उसके साथ साथ वेदना और क्रियात्मक भावकी भी अनुभूति होती है । अनात्मक मनोवृत्तिके सवेदन, प्रत्यक्षीकरण, स्मरण, कल्पना और विचार ये पांच हैं | संवेदनात्मकके सवेग, उमंग, स्थायीभाव और भावना ग्रन्थि ये चार भेद एवं क्रियात्मक मनोवृत्तिके सहज क्रिया, मूलवृत्ति, आदत, इच्छित क्रिया और चरित्र ये पाँच भेद किये गये हैं । णमोकारमन्त्र के स्मरणसे ज्ञानात्मक मनोवृत्ति उत्तेजित होती है, जिससे उससे अभिन्नरूपमे सम्बद्ध रहनेवाली उमग वेदनात्मक अनुभूति और चरित्र नामक क्रियात्मक अनुभूतिको उत्तेजना मिलती है । अभिप्राय यह है कि मानव मस्तिष्क मे ज्ञानवाही और क्रियावाही ये दो प्रकारकी नाडियां होती हैं | इन दोनो नाडियोका आपसमे सम्बन्ध होता है, परन्तु इन दोनोके केन्द्र पृथक् हैं । ज्ञानवाही नाडियां और मस्तिष्क के ज्ञानकेन्द्र मानवके ज्ञानविकासमे एवं क्रियावाही नाडियाँ और मानव मस्तिष्क के क्रिया केन्द्र उसके चरित्रके विकासकी वृद्धिके लिए कार्य करते हैं । क्रियाकेन्द्र मौर ज्ञानकेन्द्रका घनिष्ठ सम्बन्ध होनेके कारण णमोकार मन्त्रकी आराधना, स्मरण और चिन्तनसे ज्ञानकेन्द्र और क्रियाकेन्द्रोका समन्वय होनेसे मानव मन सुदृढ़ होता है और आत्मिक विकासकी प्रेरणा मिलती है ।
मनुष्य का चरित्र उसके स्थायी भावोका समुच्चय मात्र है, जिस मनुष्य के स्थायीभाव जिस प्रकार के होते हैं, उसका चरित्र भी उसी प्रकारका होता है । मनुष्यका परिमार्जित और आदर्श स्थायीभाव ही हृदयकी अन्य प्रवृत्तियो का
७८
EVE