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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
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एक अन्य समाधान यह भी है कि जिस प्रकार प्रथम विभागके परमेष्ठियोमे उपकारी परमेष्ठी को पहले रखा गया है, उसी प्रकार द्वितीय विभागके परमेष्ठियोमे भी उपकारी परमेष्ठीको प्रथम स्थान दिया गया है। आत्मकल्याणकी दृष्टिसे साधुपद उन्नत है, पर लोकोपकारकी दृष्टिसे आचार्यपद श्रेष्ठ है। आचार्य सघका व्यवस्थापक ही नहीं होता, बल्कि अपने समयके चतुर्विध सघके रक्षणके साथ धर्म-प्रसार और धर्म-प्रचारका कार्य भी करता है । धार्मिक दृष्टिसे चतुर्विध सघकी सारी व्यवस्था उसीके ऊपर रहती है। उसे लोक व्यवहारज्ञ भी होना चाहिए जिससे लोकमे तीर्थंकर द्वारा प्रवर्तित धर्मका भलीभांति संरक्षण कर सके । अतः जनताके उत्थानके साथ आचार्यका सम्बन्ध है, यह अपने धर्मोपदेश-द्वारा जनताको तीर्थकरो-द्वारा उपदिष्ट मार्गका अवलोकन कराता है। भूलेभटकोको धर्मपन्थ सुझाता है। अतएव जनताका धार्मिक नेता होनेके कारण आचार्य अधिक उपकारी है। इसलिए द्वितीय विभागके परमेष्ठियोमे आचार्यपदको प्रथम स्थान दिया गया है। ___आचार्यसे कम उपकारी उपाध्याय हैं। आचार्य सर्वसाधारणको अपने उपदेशसे धर्ममार्गमे लगाते हैं, किन्तु उपाध्याय उन जिज्ञासुओको अध्ययन कराते हैं, जिनके हृदयमे ज्ञानपिपासा है । उनका सम्बन्ध सर्वमाधारणसे नहीं, बल्कि सीमित अध्ययनाथियोसे है । उदाहरणके लिए यो कहा जा सकता है कि एक वह नेता है जो अगणित प्राणियोकी सभामे अपना मोहक उपदेश देकर उन्हें हितकी ओर ले जाना है और दूसरा वह प्रोफेसर है, जो एक सीमित कमरेमे बैठे हुए छात्रवृन्दको गम्भीर तत्त्व ममझाता है । हैं दोनो ही उपकारी, पर उनके उपकारके परिमाण और गुणोमे अन्तर है। अत आचार्यके अनन्तर उपाध्याय पदका पाठ भी उपकार गुणकी न्यूनताके कारण ही रखा गया है ।
अन्तमें मुनिपद या साधुपदका पाठ आता है । साधु दो प्रकारके हैद्रव्यलिंगी और भावलिंगी। आत्मकल्याण करनेवाले भावलिंगी साधु हैं।
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