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________________ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन १ शका-आत्म-स्वरूपको प्राप्त अरिहन्त और सिद्धोको देव मानकर नमस्कार करना ठीक है, किन्तु जिन्होने आत्मस्वरूपको प्राप्त नहीं किया है,, ऐसे आचार्य, उपाध्याय और साधुको देव मानकर कैसे नमस्कार किया जाये? ___समाधान-यह शका ठीक नहीं है, क्योकि अपने अनन्त भेदोसहित सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रका नाम देव है, अतः इन तीनो गुणोंसे विशिष्ट जो जीव है, वह भी देव कहलाता है । यदि रत्नत्रयको देव नही माना जायेगा तो सभी जीव देव हो जायेंगे। अतएव आचार्य, उपाध्याय और मुनियोको भी देव मानना चाहिए, क्योकि रत्नत्रयका मस्तित्व अरहन्तोकी तरह इनमे भी पाया जाता है। ___ सिद्ध परमेष्ठीके रत्नत्रयकी अपेक्षा आचार्य आदि परमेष्ठियोका रत्नत्रय भिन्न नही है। यदि इनके रत्नत्रयमे भेद मान लिया जाये, तो आचार्यादिमे रत्नत्रयका अभाव हो जायेगा। शका-जिन्होने रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रकी पूर्णताको प्राप्त कर लिया है, उन्हीको देव मानना चाहिए, रत्नमयकी अपूर्णता जिनमें रहती है, उनको देव मानना असगत है । समाधान-यह शका ठीक नहीं है। यदि एकदेश रत्नत्रयमे देवत्व नही माना जायेगा तो सम्पूर्ण रत्नत्रयमे देवत्व नही बन सकेगा, अत आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधु भी देव हैं । जैनाम्नायमे अलौकिक सत्ताघारी किसी परोक्षशक्तिको सच्चा देव नही माना है, पर रत्नत्रयको विकासफी अपेक्षा वीतरागी, ज्ञानी और शुद्धोपयोगी आत्माओको देव कहा है। इम णमोकारमन्त्रमे सन्व-सर्व और लोए-लोक पद अन्त्य दीपक हैं। जिस प्रकार दीपक भीतर रख देनेसे भीतरके समस्त पदार्थोका प्रकाशन करता है, उसी प्रकार उक्त दोनो पद भी अन्य समस्त पदोके ऊपर प्रकाश डालते हैं । अत' सम्पूर्ण क्षेत्रमे रहनेवाले त्रिकालवर्ती अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओको नमस्कार समझना चाहिए । १. धवला, प्रथम पुस्तक, पृ० ५२-५२
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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