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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
इक् धातुका अर्थ स्मरण करना होता है, अत. जो सूत्रो के क्रमानुसार जिनागमका स्मरण करते हैं, वे उपाध्याय कहलाते हैं । अथवा उपाध्याय इस उपाधिसे जो विभूषित हो, वे उपाध्याय कहलाते हैं ।
जो मुनि परमागमका अभ्यास करके मोक्षमार्गमे स्थित हैं तथा मोक्षके इच्छुक मुनियोको उपदेश देते हैं, उन मुनीश्वरोको उपाध्याय परमेष्ठी कहते हैं । उपाध्याय ही जैनागमके ज्ञात होनेके कारण मुनिसघमे पठन-पाठन के अधिकारी होते हैं । शास्त्रोके समस्त शब्दार्थको ज्ञात कर आत्मध्यानमे लीन रहते हैं । मुनियोके अतिरिक्त श्रावकोको भी अव्ययन कराते हैं । उपाध्याय पदपर वे ही मुनिराज आसीन होते हैं, जो जैनागमके अपूर्व ज्ञाता होते हैं । ग्यारह अग और चौदह पूर्वके पाठी, ज्ञान-ध्यानमे लीन, परम निर्ग्रन्थ श्री उपाध्याय परमेष्ठीको हमारा नमस्कार हो । यहाँ ' णमो उवज्झायाण' पदमे उक्त स्वरूपवाले उपाध्यायको नमस्कार किया गया है ।
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' णमो लोए सव्वसाहूणं' - अनन्तज्ञानादिशुद्धात्मस्वरूपं साधयन्तीति साधवः । पञ्च महाव्रतधरास्त्रिगुप्तिगुप्ताः भष्टादशशीलसहस्रधराचतुरशीतिशतसहस्र गुणधराश्च साधवः २ ।
नमो-नमस्कार. | केभ्य ? लोके सर्वसाधुभ्य | लोकं - मनुष्यलोके सम्यग्ज्ञानादिमिर्मोक्षसाधका सर्वसत्त्वेषु समाइचेति साधव, सर्वे च ते स्थविरकल्पिक विभेदभिन्नाः साधवश्चेति सर्वसाधवस्तेभ्य इति । अथवा सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्रादिभि साधयन्तीति मोक्षमार्गमिति साधव । लोकं - सार्धद्वयद्वीपलक्षणे पञ्चचत्वारिंशलक्षयोजन प्रमाणे मनुष्यलोके सर्वे च ते साधवश्च । यद्वा -- अर्हत. साधव. सर्वसाधव तेभ्यो नमो-नमस्कारोऽस्तु ।
१ विशेषके लिए देखें —मूलाचार, अनगारधर्मामृत ।
२ धवला टी० प्र० पु०, पृ० ५१ । ३. सप्तस्मरणानि, पृ० ४ ।