________________
मंगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन
अर्हन्त भगवान् दिव्य औदारिक शरीरके धारी होते हैं, घातिया - कर्ममलसे रहित होनेके कारण उनका आत्मा महान् पवित्र होता है, अनन्त चतुष्टयरूपी लक्ष्मी उनको प्राप्त हो जाती है, अत वे परमात्मा, स्वयम्भू, जगत्पति, धर्मचको, दयाध्वज, त्रिकालदर्शी, लोकेश, लोकघाता, दृढव्रत, पुराणपुरुष, युगमुख्य, कलाधर, जगन्नाथ, जगद्विभु, सर्वज्ञ, प्रशास्ता, वृहस्पति, ज्ञानगर्भ, दयागर्भ, हेमगर्भ, सुदर्शन, शंकर, पुण्डरीकाक्ष, स्वयवेद्य, पितामह, ब्रह्मनिष्ठ, यज्ञपति, सुयज्वा, वृषभध्वज, हिरण्यगर्भ, स्वयंप्रभु, भूतनाथ, सर्वलोकेश, निरजन, प्रजापति, श्रीगर्भ आदि नामोंसे पुकारे जाते हैं ।
४२
दलिय - मयण - प्यावा तिकाल- विसरहि तीहि ययेदि । दिट्ठ सयलट्ठ- सारा सुदद्ध-तिउरा मुणि-व्वणो ॥ ति रयण-तिसूलधारिय मोहधासुर - कबंध - बिंद- हरा | सिद्ध-सयलप्प-रूवा अरहंता दुरणय-कयता ॥
-
धवला टीका, प्रथम पुस्तक, पृ० ४५
१ दिव्यौदारिकदेहस्थो धोतघा तिचतुष्टय. । शानदृग्वीर्यसौख्याच. सोऽर्द्दन् धर्मोपदेशक' |
पञ्चाध्यायी, अ० २, पृ० १५८
अरहति णमोक्कारं श्ररिहा पूजा सुरुत्तमा लोए । रनहता अरिहति य भरता वेण उच्चदे ॥
- मूत्राराधना, गा० ५०५
अरिहति वंदणणमसाई धरछति पृयसकारं । सिद्धिगमणं च अरहा अरिहंता तेण वुञ्चति ॥ देवासुरमनुयाण अरिहा पूया सुसत्तमा जम्दा | अरिणो हंता रयं हंता अरिहंता तेण वुच्चति ॥
- विशेषावश्यकभाष्य ३५८४- ३५८५
---