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३२ मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन . होता है। अभिभावके घातक हैं, तीव्रबन्ध होता है और शुभ परिणामोंसे महामन्त्रके ता है । जब विशुद्ध परिणाम प्रबल होते हैं तो पहलेके तीन त्मा भी मन्द कर देते हैं, क्योकि विशुद्ध परिणामोसे बन्ध नही होता, वल निर्जरा होती है। णमोकार मन्त्रमे प्रतिपादित पंचपरमेष्ठीके स्मरणसे जो भावनाएं उत्पन्न होती हैं, उनसे कषायोकी मन्दता होती है तथा वे परिणाम समस्त कषायोको मिटानेके साधन बनते हैं। ये ही परिणाम आगे शुद्ध परिणामोकी उत्पत्तिमे भी साधनाका कार्य करते हैं। अतएव भावसहित णमोकार मन्त्रके स्मरणसे उत्पन्न परिणामो द्वारा जब अपने स्वभावघातक घातिया कर्म क्षीण हो जाते हैं, तब सहजमे वीतरागता प्रकट होने लगती है। जितने अंशोमे घातिया कर्म क्षीण होते हैं, उतने ही अंशोमे वीतराग-भाव उत्पन्न होते हैं । इन्द्रियासक्ति एवं असयमकी प्रवृत्ति णमोकार मन्त्रके मननसे दूर होती है, आत्मामें मन्द कषायजन्य भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। असाता आदि पाप प्रवृत्तियां मन्द पड़ जाती हैं और पुण्यका उदय होनेसे स्वतः सुख-सामग्री उपलब्ध होने लगती है।
उपर्युक्त विवेचनमें हम इस निष्कर्षपर पहुंचते हैं कि आत्माको शुद्ध करनेकी तथा अपने सत् चित् और आनन्दमय स्वरूपमे अवस्थित होनेकी प्रेरणा इस णमोकार मन्त्रसे प्राप्त होती है । विकारजन्य अशान्तिको दूर करनेका एकमात्र साधन यह णमोकार मन्त्र है। इस मन्त्रके स्मरण, चिन्तन और मनन विना अन्य किसी भी प्रकारकी साधना सम्भव नहीं है। यह सभी प्रकारको साधनाओका प्रारम्भिक स्थान है तथा समस्त साधनोंका मन्त भी इसीमे निहित है । अत राग-द्वेष, मोह आदिकी प्रवृत्ति तभीतक । जीवमें वर्तमान रहती है, जबतक जीव आत्माके वास्तविक स्वरूपकी उपलन्धिसे वंचित रहता है । आत्मस्वरूप पंचपरमेष्ठीकी आराधनासे अपनेआप अवगत हो जाता है। जिस प्रकार एक जलते दीपकसे अनेक मोलहुए दीपकोको जलाया जा सकता है, उसी प्रकार पंचपरमेष्ठीकी मार्गका मात्मामोंसे अपनी ज्ञान-ज्योतिको प्रज्वलित किया जा सकता है है, उसी ।