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मगलमन्त्र णमोकार - एक चिन्तन ३५ प्रकार यह मन्त्र अन्तरात्माको साघु, उपाध्याय, आचक्षीण कषायवाले सिद्धि रूप गन्तव्य स्थानपर पहुंचनेके लिए मार्ग परिज्ञानका कर सकते हैं। अर्थात् अन्तरात्मा इस मन्त्रके सहारे पचपरमेष्ठी पदको प्राप्त होतारणोके
परमात्माके दो भेद हैं-सकल और निकल । घातिया कर्मोंको नाशकरनेवाले और सम्पूर्ण पदार्थोके ज्ञाता, द्रष्टा मरिहन्त सकल परमात्मा है। समस्त प्रकारके कर्मोमे रहित अशरीरी सिद्ध निकल परमात्मा कहे जाते हैं। कोई भी अन्तरात्मा णमोकार मन्त्रके भाव-स्मरणसे परमात्मा बनता है तथा सकल परमात्मा भी योग निरोध कर अघातिया कर्मोका नाश करते समय णमोकार मन्त्रका भाव चिन्तन करते हैं । निर्वाण प्राप्त होनेके पहले तक णमोकार मन्त्रके स्मरण, चिन्तन, मनन और उच्चारणकी सभीको आवश्यकता होती है, क्योंकि इस मन्त्रके स्मरणमे मात्मामे निरन्तर विशुद्धि उत्पन्न होती है। श्रद्धा-भावना, जो कि मोक्ष महलपर चढने के लिए प्रथम सीढी है, इसी मन्त्रमे भाव स्मरण-द्वारा उत्पन्न होती है। सरल शब्दोंमे यो कहा जा सकता है कि इस मन्त्रमें प्रतिपादित पचपरमेष्ठीके स्मरण और मननसे आत्मविश्वासकी भावना उत्पन्न होती है, जिससे रागद्वेप प्रभृति विकारोका नाश होता है, साथ ही अपना इष्ट भी सिद्ध होता है। अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वमाधुको परमेष्ठी इसीलिए कहा जाता है कि इनके स्मरण, चिन्तन और मनन-द्वारा सुखकी प्राप्ति और दुखके विनाशरूप इष्ट प्रयोजनकी सिद्धि होती है। विश्वके प्रत्येक प्राणीको सुख इष्ट है, क्योकि यह आत्माका प्रमुख गुरण है तथा इससे उत्पन्न होनेपर ही वेचैनी दूर होती है। ये परमेष्ठी स्वय परमादमे स्थित हैं तथा इनके अवलम्बनसे अन्य व्यक्ति भी परमपदमे स्थित हो सकते हैं। है, स्पष्ट करनेके लिए यो समझना चाहिए कि आत्माके तीन प्रकारके परिनुशाम होते हैं-अशुभ, शुभ और शुद्ध । तीब कपायरूप परिणाम
यशुभ,थमन्द कपायरूप परिणाम शुभ और कपायरहित परिणाम शुद्ध होते __ हैं। राग हैं पिरूप सक्लेश परिणामोसे ज्ञानावरणादि घातिया कर्मोका, जो