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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन २५१ सोलह पत्रवाला, ज्वलन्त और दीप्त स्वरवाला तथा आठ आरे और आठ वलयसे युक्त यह 'पंच नमस्कार चक्र' त्रिभुवनमे प्रमाणभूत है ।।२९।।
सयलुज्जोइय • भुवर्ण, विद्वाविय - सेस-सत्तु - सघायं ।
नासिय-मिच्छत्त-तमं, वियलिय-मोह हय-तमोइं॥३०॥ यह पचनमस्कार चक्र समस्त भुवनोको प्रकाशित करनेवाला, सम्पूर्ण शत्रुओको दूर भगानेवाला, मिथ्यात्वरूपी अन्धकारका नाश करनेवाला, मोहको दूर करनेवाला और अज्ञानके समूहका हनन करनेवाला है ।॥३०॥
एव सय मज्झत्थो, सम्मादिट्ठी विसुद्ध चारित्तो । नाणी पवयण - भत्तो, गुरुजण - सुस्सूसणा परमो ॥३॥ जो पच नमुक्कार, परमो पुरिसो पराइ भत्तोए । परिय - इ पहदिणं, पयमो सुस्कमो भप्पा ॥३२॥ अट्टेव य भट्टसय, अट्ठसहस्सं च उमयकालं पि ।
अहेब य कोडीमो, सो तइय-भेव लहइ मिद्धिं ॥३३॥ जो उत्तम पुरुष सदा मध्यस्थ, सम्यग्दृष्टि. विशुद्ध चरित्रवान्, ज्ञानी प्रवचन भक्त और गुरुजनोकी शुश्रूपामें तत्पर है तथा प्रणिधानसे आत्माको शुद्ध करके प्रतिदिन दोनो सन्ध्याओके समय उत्कृष्ट भक्तिपूर्वक माठ, आठ सौ, आठ हजार, आठ करोड मन्त्रका जाप करता है, वह तीमरे भवमे सिद्धि प्राप्त करता है ॥३१-३३॥
एसो परमो मंतो, परम-रहस्स परंपर तत्त ।
नाणं परमं नेयं, सुखं झाणं परं शेयं ॥३४॥ यह णमोकार मन्त्र ही परम मन्त्र है. परम रहस्य है, सबसे वडा तत्त्व है, उत्कृष्ट ज्ञान है और है शुद्ध तथा ध्यान करने योग्य उत्तम ध्यान ॥३४॥
एय कवयमभेय, खाइ य सस्थ परा भवणरक्ला ।
जोई सुन्नं बिन्दु, नाओ तारा लवो मत्ता ॥३५॥ यह णमोकार मन्त्र अमोघ कवच है,परकोटेकी रक्षाके लिए खाई है,