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२५० मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन र
थंमेइ जलं जळणं, चिंतिय मित्तो विपंच-नवकारो
अरि-मारि-चोर-राउल-घोरुबसगं पणासेइ ॥२४॥ इस णमोकार मन्त्रके चिन्तनमात्रसे जल और अग्नि स्तम्भित हो जाते हैं तथा शत्रु, महामारी, चोर और राजकुल-द्वारा होनेवाले घोर उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ॥२४॥
अटेव य अढसयं, असहस्सं च अट्टकोडीओ। रक्खतु मे सरीर, देवासुर-पणमिया सिद्धा ॥२५॥ देवता और असुरों-द्वारा नमस्कार किये गये आठ, आठ सौ आठ हजार या आठ करोड़ सिद्ध मेरे शरीरकी रक्षा करें ॥२५॥
नमो भरहताणं तिलोय-पुज्जो य संथुओ भयव ।
अमर-नरराय-महिमओ, अणाइ-निहणो सिवं दिसड ॥२६॥ उन अर्हन्तोको नमस्कार हो, जो त्रिलोक-द्वारा पूज्य, और अच्छी तरह स्तुत्य हैं तथा इन्द्र और राजाओं-द्वारा वन्दित हैं, और जो जन्ममरणसे रहित हैं, वे हमें मोक्ष प्रदान करें ॥२६॥ ' . ' ,
निद्वविय-अट्ठकम्मो, सुइ-भूय-निरंजणो सिवो सिद्धो।
अमर-नरराय-महिओ, अणाइ-निहणो सिवं दिसउ ॥२७॥
आठो कर्मों को नष्ट कर देनेवाले, शुचिभूत, निरंजन, कल्याणमय तथा सुरेन्द्रों और नरेन्द्रोंसे पूजित अनादि अनन्त सिद्ध परमेष्ठी मुझे मुक्ति प्रदान करें ॥२७॥
सव्वे पमोस-मच्छर-आहिय-हियया पणासमुवति। दुगुणीकय-धणुपई, सोउ पि महाधणुं सहसा ॥२॥
"ॐ घणु-धणु महाधणु स्वाहा" इस मन्त्ररूपी विद्याको,सुनकर सव ईर्ष्या, द्वेप और मात्सर्यसे भरे हृदयवाले शीघ्र ही नष्ट होते हैं ॥२८॥
इय विहुयण-पमाण, सोलस-पचं जलंत-दित्त-सरं । अट्ठार-भट्टवलयं, पच-नमुक्कार-चक्कमिणं ॥२९॥
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