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२१२ मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन आत्माएँ अहिंसाकी विशुद्ध मूर्ति हैं । अहिंसा ऐसा धर्म है, जिसका पालन प्राणीमात्र कर सकता है और इस आदर्श-द्वारा सबको सुखी बनाया जा विश्व और णमो
सकता है । जब व्यक्तिमे अहिंसा धर्म पूर्णरूपसे
प्रतिष्ठित हो जाता है तब उसके दर्शन और कार मन्त्र
स्मरणसे सभीका सर्वत्र कल्याण होता है । कहा भी गया है कि - "अहिंसा-प्रतिष्ठायां सासनिधो वैरत्याग" अर्थात् अहिंसाकी प्रतिष्ठा हो जानेपर व्यक्तिके समक्ष क्रूर और दुष्ट जीव भी अपनी वैरभावनाका त्याग कर देते हैं। जहां अहिंसक रहता है, वहीं दुष्काल, महामारी, आकस्मिक विपत्तियां एवं अन्य प्रकारके दुख प्राणीमात्रको व्याप्त नहीं होते । अहिंसक व्यक्तिके सन्निधानसे समस्त प्राणियोंको सुखशान्ति मिलती है । अहिंसककी आत्मामे इतनी शक्ति उत्पन्न हो जाती है, जिससे उसके निकटवर्ती वातावरणमे पूर्ण शान्ति व्याप्त हो जाती है।
जो प्रभाव अहिंसकके प्रत्यक्ष रहनेसे होता है, वही प्रभाव उसके नाम और गुणोंके स्मरणसे भी होता है। विशिष्ट व्यक्तियोंके गुणों के चिन्तनसे सामान्य व्यक्तियोके हृदयमे अपूर्व उल्लास, आनन्द, तृप्ति एवं तद्रूप बननेकी प्रवृत्ति उत्पन्न होती है । णमोकार मन्त्रमे प्रतिपादित विभूतियोमे विश्वकल्याणकी भावना विशेष रूपसे अन्तनिहित है। स्वय शुद्ध हो जानेके कारण ये आत्माएँ ससारके जीवोको सत्यमार्गका प्ररूपण करनेमे समर्थ हैं तथा विश्वका प्राणीवर्ग उस कल्याणकारी पक्षका अनुः सरण कर अपना हित साधन कर सकता है ।
विश्वमे कीट-पतगसे लेकर मानव तक जितने प्राणी हैं, सब सुख और मानन्द चाहते हैं । वे इस आनन्दकी प्राप्तिमे पर-वस्तुओंको अपना समझते हैं । तृष्णा, मोह, राग, द्वेष आदि मनोवेगोके कारण नाना प्रकारके कु-आचरण कर भी सुख प्राप्त करनेकी इच्छा करते हैं । परन्तु विश्वके प्राणियोंको सुख प्राप्त नही हो पाता है। अहिंसक स्वपर कल्याणकारक आत्मामोका आदर्श ऐसा ही है जिसके द्वारा सभी अपना विश्वास मोर,