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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन २०३ दूसरे अभी दो-तीन माहका जिकर है कि जब मेरी बिरादरीवालोको मालूम हुआ कि मैं जैन मत पालने लगा हूँ, तो उन्होने एक सभा की, उसमे मुझे बुलाया गया। मे जखोरासे झाँमी जाकर समामे शामिल हुआ। हर एकने अपनी-अपनी रायके अनुसार बहुत कुछ कहा-सुना और बहुत-से सवाल पैदा किये, जिनका कि मैं जवाब भी देता गया। बहुत-से महाशयोने यह भी कहा कि ऐसे आदमीको मार डालना ठीक है, लेकिन अपने धर्मसे दूसरे धर्ममे न जाने पावे । इस तरह जिसके दिलमे जो वात आयी, कही। अन्तमे सब लोग अपने-अपने घर चले गये और मैं भी अपने कमरेमे चला आया। क्योकि मैं जब अपने माता-पिताके घर आता हूँ तो एक-दूसरे कमरेमे ठहरता हूँ और अपने हाथसे भोजन पकाकर खाता हूँ। उनके हाथका बनाया हुआ भोजन नहीं खाता। जब शामका समय हुआ - यानी सूर्य अस्त होने लगा तो मैंने सामायिक करना आरम्भ किया और सामायिकसे निश्चिन्त होकर जब आंखें खोली तो देखता हूं कि एक बडा सांप मेरे आस-पास चक्कर लगा रहा है और दरवाजेपर एक बरतन रखा हुआ मिला, जिससे मालूम हुआ कि कोई इसमे बन्द करके यहाँ छोड गया है। छोडनेवालेकी नीयत एकमात्र मुझे हानि पहुंचानेकी थी।
लेकिन उस साँपने मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। मै वहाँसे डरकर आया और लोगोसे पूछा कि यह काम किसने किया है, परन्तु कोई पता न लगा। दूसरे दिन सामायिक समय जब साँपने पासवाले पडोसीके बच्चेको डंस लिया तब वह रोया और कहने लगा कि हाय मैंने बुरा किया कि दूसरेके वास्ते चार आने पैसे देकर वह सांप लाया था, उसने मेरे बच्चेको काट लिया । तब मुझे पता चला, बच्चेका इलाज हुआ, मैं भी इलाज करानेमे सना रहा, परन्तु कोई लाभ नही हुआ । वह बच्चा मर गया । उसके १५ दिन बाद वह भादमी भी मर गया, उसके वही एक बच्चा था। देखिए सामायिक और णमोकार मन्त्र कितना जबरदस्त खम्भ