________________
१९४ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन दिया। दोनो मखियां बढे प्रेमके साथ विद्याभ्यास करने लगीं। 'सुलोचनाकी इस सखीका नाम विन्ध्यश्री था। एक दिन विन्ध्यश्री फूल । तोडने बगीचेमे गयी, वहां एक सांपने उसे काट लिया, जिससे वह मूच्छित होकर गिर पड़ी। सुलोचनाने उसे एमोकार मन्त्र सुनाया, जिसके प्रभावसे वह मरकर गंगादेवी हुई तथा सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। कहा है
महामन्त्र को सुलोचना से विभ्यश्री ने जब पाया। भक्ति-माव से उसने पायी गंगा देवी की काया । क्यों न कहेगा अकथनीय है नमस्कार महिमा मारी । उसे भजेगा सतत नेम से बन जावेगा सुखकारी ॥ चौथी कथामे आया है कि चारुदत्तने एक अर्द्धदग्ध पुरुषको, जिसे एक संन्यासीने धोखा देकर रसायन निकालनेके लिए कुएमे डाल दिया था और जिसका आधा शरीर वर्षों से उस अन्धकूपमें रहनेके कारण जल गया था, जिससे उसमे चलने-फिरनेकी भी शक्ति नहीं थी, जिसके प्राणोका अन्त ही होना चाहता था, उसे चारुदत्तने णमोकार मन्त्र सुनाया। अन्तिम समयमे इस महामन्त्रके श्रवणमात्रसे उसकी आत्मामें इतनी विशुद्धि आयो जिससे वह प्रथम स्वर्गमे देव हुआ। आगे इसी कथामे बतलाया गया है कि चारुदत्तने एक मरणासन्न बकरेको भी णमोकार मन्त्र सुनाया, जिससे वह बकरेका जीव भी स्वर्गमे देव हुआ ।
पुण्यासव-कथाकोषकी एक कथामे बतलाया गया है कि कीचडम फंसी हुई हथिनी णमोकार मन्त्रके श्रवणसे उत्तम मानव पर्यायको प्राप्त हुई। कहा गया है कि गुणवतीका जीव अनेक पर्यायोको धारण करनेके पश्चात् एक वार हथिनी हुआ । एक दिन वह हथिनी कीचडमें फस गयी और उसका प्राणान्त होने लगा। इसी बीच सुरंग नामका विद्याधर आया और उसने हथिनीको णमोकार मन्त्र सुनाया; जिसके प्रभावसे वह मरकर