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मगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन
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राजा - "सेठजी | आज में अपने उपकारीको पाकर धन्य हो गया । आपकी कृपासे ही मै राजा हुआ हूँ । आपने मुझे दया कर णमोकार मन्त्र सुनाया जिसके पुण्यके प्रभावसे मेरी तिथंच जाति छूट गयी तथा मनुष्य पर्याय और उत्तम कुलकी प्राप्ति हुई । अव मैं आत्मकल्याण करना चाहता हूँ | मैंने आपका पता लगानेके लिए ही जिनालय मे वह प्रस्तरमूर्ति अकित करायी थी । कृपया आप इस राज्यभारको ग्रहण करें और मुझे आत्मकल्याणका अवसर दें। अब में इस मायाजालमे एक क्षण भी नही रहना चाहता हूँ ।" इतना कहकर राजाने सेठके मस्तकपर स्वय ही राजमुकुट पहना दिया तथा राज्यतिलक कर दिगम्बर दीक्षा धारण की । वह कठोर तपश्चरण करता हुआ णमोकार मन्त्रकी साधना करने लगा और अन्तिम समय में सल्लेखना धारण कर प्राण त्याग दिये, जिससे वह सुग्रीव हुआ है । सेठ पद्मरुचिने अन्तिम समयमे सल्लेखना धारण की तथा णमोकार मन्त्रकी साधना की, जिससे उनका जीव महाराज रामचन्द्र हुआ है । इस णमोकार मन्त्रमे पाप मिटाने और पुण्य बढाने की अपूर्व शक्ति है । केवली मुनिराजके द्वारा इस प्रकार णमोकार मन्त्रकी महिमाको सुनकर विभीषण, रामचन्द्र, लक्ष्मण और भरत आदि सभीको अत्यन्त प्रसन्नता हुई ।
णमोकार मन्त्र के स्मरण से बन्दरने भी आत्मकल्याण किया है। कहा जाता है कि अर्धमृतक एक वन्दरको मुनिराजने दया कर णमोकार मन्त्र सुनाया । उस वन्दरने भो भक्तिभावपूर्वक णमोकार मन्त्र सुना, जिसके प्रभावसे वह चित्रांगद नामका देव हुआ । चित्रागदके जीवने च्युत होकर मानव पर्याय प्राप्त की और अपना वास्तविक कल्याण किया ।
तीसरी कथामे बताया गया है कि काशीके राजाकी लडकीका नाम सुलोचना था । यह जैनधर्ममे अत्यन्त अनुरक्त थी । वह सतत विद्याभ्यास मे लीन रहती थी । अत उसके पिता ने अपने मित्रकी कन्याके साथ उसे रख
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