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मगलमा णमोकार : एक अनुचिन्तन १८५ गिरकर अनन्तमती की पूजा की और हाथ जोडकर वे चाहने सगे-पमूतें! हमने विना जाने वा माराप किया। हम लोगोफ गमान गगार. मे यौन पापी हो सकता है। अब बार हमे क्षमा करें, यह तारा राज्य गार सारा वैभव मापसे चरणोंमे अपित है । अनन्तगतीने कहा"रामन् ! धर्मसे बढ़कर कोई भी वस्तु हितकारी नहीं है। आप धर्म में स्थिर हो जाइए। रामोकारमन्त्रका विज्ञान कीजिए। इसी मन्नने स्मरण, ध्यान और चिन्तनसे आपके समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे। पचपरमेष्ठी वाचक इम महामन्त्रका प्यान सभी पापोको भस्म करनेवाला है। पापोसे पापी व्यक्ति भी इम महामन्त्र के ध्यानमे सभी प्रकारको सुख प्राप्त करता है।" राजाने रानियों और अमात्यसहित णमोकार मन्यका ध्यान निया, जिमने उनको आत्मामे विशुद्धि उत्पन्न हो गयी।
वहाँसे चलकर अनन्तमती जिनालयमे पहुंची और वही आयिकाके पास जाकर धर्म श्रवण किया। यहींपर उसके माता-पितासे मुलाकात हुई। पिताने अनन्तमतीको घर ले जाना चाहा, पर उसने घर जाना पसन्द नहीं किया और पितामे स्वीकृति लेकर वरदत्त मुनिराजकी शिष्या कमतश्री गायिकासे जिन-दीक्षा ले ली तथा नि.काक्षित हो व्रत पालन करने लगी। वह दिन-रात णमोकार मन्त्रके ध्यानमे लीन रहती थी तथा उग्र तपश्चरण करनेमे लीन थी। अन्तिम समयमे उसने समाधिमरण धारण किया, जिसमे स्त्रीलिंगका छेदकर बारहवें स्वर्गमे १८ सागरकी आयु प्राप्त कर देव हुई। इस प्रकार णमोकार मन्यकी साधनामे अनन्तगतीने अपने सासारिक कष्टोको दूर कर मात्म-कल्याण किया।
धर्मामृतकी चौथी कथामे बताया गया है कि नारायणदत्ता नामक सन्यामिनीके बहकावेमे गाकर मालवनरेश चण्डप्रयोतने रोरवपुर नरेश उद्दायनकी पत्नी प्रगावनी के रूप-मोन्दर्यका लोभी बनकर राजा उदायनको अनुपस्थितिमे रोरवपुरपर आक्रमण किया । उस समय रानी प्रभावतीके शीलकी रक्षा णमोकार मन्त्र की आराधनामे ही हुई। प्रभावतीने अन्न