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१८४ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन का मासन हिला और उसने ज्ञानवलसे सारी घटनाएँ अवगत कर ली। वह अनन्तमतीके पास पहुंचा और अदृश्य होकर राजाको पीटने लगा । आश्चर्यकी बात यह थी कि मारनेवावाला कोई नही दिखलाई पडता था, केवल मारही दिखलाई पडती थी। कोड़े लगने के कारण युवराजके मुंहसे खून निकल रहा था। राजा-अमात्य सभी मूच्छित थे, फिर भी मार पडना वन्द नही हुआ था। हल्ला-गुल्ला और चीत्कार सुनकर दरवारके अनेक व्यक्ति एकत्र हो गये । रानियां भा गयी, पर युवराजकी रक्षा कोई नहीं कर सका।. जवसव लोगोने मिलकर मारनेवालेकी स्तुति की तो शासनदेवने प्रत्यक्ष हो कहा-"आप लोग इसी सतीको प्रसन्न करें, मैं तो सतीका दास है। यह कुमारी णमोकारमन्त्रके ध्यानमे इतनी लीन है कि मुझे इसकी सेवाके लिए आना पडा है । जो भगवान्की भक्तिमे निरन्तर लीन रहते हैं, उनकी आराधना और सेवा मावालवृद्ध सभी करते हैं । जो मोहवशमे आकर भक्तिका तिरस्कार करता है, वह अत्यन्त नीच है। जिसके पास धर्म रहता है उसके पास ससारकी सभी अलभ्य वस्तुएँ रहती हैं । व्रतविभूषित व्यक्ति यदि भगवान्के चरणोकी भक्ति करता है, तो उसे संसारके सभी दुर्लभ पदार्थ अपने-आप प्राप्त हो जाते हैं । रणमोकारमन्त्रका ध्यान समस्त अरिटोको दूर करनेवाला है। जो विपत्तिमे इस मन्त्रका स्मरण करता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं । पचपरमेष्ठी की भक्ति और उनका स्मरण सभी प्रकारके सुखोको प्रदान करता है । पश्चात् देवने कुमारीसे कहा"हे अनन्तमती ! तुम्हारा सकट दूर हुआ, नेत्रोन्मीलन करो। ये सव भक्त तुम्हारी चरण-धूल लेनेके लिए आये हैं । जिस प्रकार अग्निका स्वभाव जलना, पानीका स्वभाव शीतल, वायुका स्वभाव बहना है, उसी प्रकार णमोकारमन्त्रकी आराधनाका फल समस्त उपसर्ग और कष्टोका दूर होना है। अब इस राजकुमारको आपक्षमा करें। ये सभी नगरनिवासी आपसे क्षमा याचनाके लिए आये हैं।" इस प्रकार शासनदेवने अनन्तमतीके द्वारा राजकुमारको क्षमा प्रदान करायी। राजा, अमात्य तथा रानियोने