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मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
दयामित्रके इस उपदेशको सुनकर वसुभूति स्थिर हो गया । उसने अपने परिणामोंको वाह्य पदार्थोंसे हटाकर आत्माकी ओर लगाया और णमोकार मन्त्रका ध्यान करने लगा । ध्यानावस्थामे ही उसने शरीरका त्याग किया, जिसके प्रभाव से सौधर्मके स्वर्गके मणिप्रभा विमानमे मणिकुण्ड नामक देव हुआ । स्वर्गके दिव्य भोगोंको देखकर वसुभूतिके जीव मणिकुण्डको अत्यन्त आश्चर्य हुआ । तत्काल ही भवप्रत्यय अवधि - ज्ञानके उत्पन्न होते ही उसने अपने पूर्वभवकी सब घटना अवगत कर ली और णमोकार मन्त्र के दृढ श्रद्धानका फल समझ अपने उपकारी दयामित्र के दर्शन करने को आया और उसकी भक्ति कर अपने स्थानको चला गया । वसुभूतिका जीव स्वर्गसे चय कर अभयकुमार नामक राजा श्रेणिकका पुत्र हुआ । इसने वयस्क होते ही दीक्षा ले लो और कठोर तरश्चरण कर समाधिके साथ शरीर त्याग किया, जिससे सर्वार्थसिद्धिमे अहमिन्द्र हुआ । वहाँसे चय कर निर्वाण प्राप्त करेगा । णमोकार मन्त्रके दृढ श्रद्धान द्वारा व्यक्ति सभी प्रकारके सुख प्राप्त कर सकता है । संसारका कोई भी कार्य उसके लिए दुर्लभ नहीं होता है ।
इस ग्रन्थकी दूसरी कथामे बताया गया है कि ललितागदेव-जैसे व्यभिचारी, चोर, लम्पट, हिंसक व्यक्ति भी इस मन्त्र के प्रभावसे अपना कल्याण कर लिये हैं, तो अन्य व्यक्तियोकी बात ही क्या ? यही ललितागदेव आगे चलकर अंजन चोर नामसे प्रसिद्ध हुआ है, क्योंकि यह चोरकी कलामे इतना निपुण था कि लोगोके देखते हुए उनके सामनेसे वस्तुओका अपहरण कर लेता था । इसका प्रेम राजगृह नगरीकी प्रधान वेश्या मणिकांजना से था । वेश्याने ललितागदेव उर्फ अंजनचोर से कहा- " प्राणवल्लभ 1 आज मैंने प्रजापाल महाराजकी कनकावती नामकी पट्टरानीके गलेमे ज्योतिप्रभानामक रत्नहार देखा है । वह वहुत ही सुन्दर है । मैं उस हार के बिना एक घडी भी नही रह सकती हूँ । अत. तत्काल मुझे उस हारको ला दीजिए।” ललितागदेव उर्फ अजनचोरने कहा- "प्रिये, वह बहुत बडी बात
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