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मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
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ध्यानसे आत्मा में केवलज्ञानपर्यायको उत्पन्न किया जा सकता है । साधक वाह्य जगत् से अपनी प्रवृत्तिको रोककर जब आत्ममय कर देता है, तो उक्त पर्यायकी प्राप्तिमे विलम्ब नहीं होता । णमोकार मन्त्रमे इतनी बढी शक्ति है जिससे यह मन्त्र श्रद्धापूर्वक साधना करनेवालोको आत्मानुभूति उत्पन्न कर देता है तथा इस मन्त्रके साधकमे प्रथम गुण आ जाता है | अतः णमोकार मन्त्र के द्वारा सम्यक्त्व और केवलज्ञान पर्यायें उत्पन्न हो सकती हैं । यद्यपि निश्चय नयकी अपेक्षा सम्यक्त्व और केवलज्ञान आत्मा सर्वदा विद्यमान हैं; क्योकि ये आत्माका स्वभाव हैं, इनमे परके अवलम्बनकी आवश्यकता नही । णमोकार मन्य आत्मासे पर नही है, यह आत्मस्वरूप है। अतएव निष्कामकी अपेक्षा यह महामन्त्र आत्मोत्थानके लिए आलम्बन नही है, किन्तु आत्मा ही स्वयं उपादान और निमित्त है यथा आत्माकी शुद्धिके लिए शुद्धात्माको अवलम्वन बनाया जाता है, इसका अर्थ है कि शुद्धात्माको देखकर उनके ध्यान द्वारा अपनी अशुद्धताको दूर किया जाता है अर्थात् आत्मा स्वय ही अपनी शुद्धिके लिए प्रयत्नशील होता है । णमोकार मन्त्र भाव और द्रव्य रूपसे आत्मामे इतनी शुद्धि उत्पन्न करता है जिससे श्रद्धागुणके साथ श्रावक गुण भी उत्पन्न हो जाता है । यद्यपि यह मानन्द आत्माके भीतर ही वर्तमान है, कही बाहरसे प्राप्त नही किया जाता है, किन्तु णमोकार मन्त्रके निमित्तके मिलते ही उबुद्ध हो जाता है । चरित्र और वीर्य आदि गुण भी इस महामन्त्रके निमित्तसे उपलब्ध किये जा सकते हैं । अतएव आत्माके प्रधान कार्य रत्नश्रय या उत्तम क्षमादि पक्ष धर्मकी उपलब्धिमे यह मन्त्र परम सहायक है ।
मुनि पंच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रियजय, षट् आवश्यक, स्नानत्याग, दन्तधावनका त्याग, पृथ्वीपर शयन, खडे होकर भोजन लेना, दिनमे एक बार शुद्ध निर्दोष आहार लेना, नग्न रहना, और केशलु च करना इन अट्ठाईस मूल गुणोका पालन करते हैं । ये मध्य रात्रिमे चार
मुनिका आचार और णमोकार मन्त्र