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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
णमोकार महामन्त्रका गणित इसी प्रकारका है, जिससे इसके अभ्यासद्वारा मन विषय-चिन्तनसे विमुख हो जाता है और णमोकार मन्त्रकी साधनामें लग जाता है। प्रारम्भमें साधक जब णमोकार मन्त्रका ध्यान करना शुरू करता है तो उसका मन स्थिर नही रहता है। किन्तु इस महामन्त्रके गणितद्वारा मनको थोडे ही दिनमे अभ्यस्त कर लिया जाता है । इधर-उधर विषयोंकी ओर भटकनेवाला चचल मन, जो कि घर द्वार छोडकर वनमे रहनेपर भी व्यक्तिको मान्दोलित रखता है, वह इस मन्त्रके गणितके सतत अभ्यास-द्वारा इस मन्त्रके अर्थचिन्तनमे स्थिर हो जाता है तथा पंचपरमेष्ठी-शुद्धात्माका ध्यान करने लगता है।
प्रस्तार, भगसख्या, नष्ट, उद्दिष्ट, आनुपूर्वी और अनानुपूर्वी इन गणित विधियो-द्वारा णमोकार महामन्त्रका वर्णन किया गया है। इन छह प्रकारके गणितोमे चचल मन एकाग्र हो जाता है। मनके एकाग्र होनेसे आत्माकी मलिनता दूर होने लगती है तथा स्वरूपाचरणको प्राप्ति हो जाती है । णमोकार मन्त्रमे सामान्यकी अपेक्षा, पांच या विशेषको अपेक्षा ग्यारह पद, चौंतीस स्वर, तीस व्यजन, अट्ठावन मात्राओद्वारा गणित-क्रिया सम्पन्न की जाती है। यहां सक्षेपमे उक्त छहो प्रकारकी विधियोका दिग्दर्शन कराया जायेगा। ___भंगसख्या-किसी भी अभीष्ट पदसंख्यामे एक, दो, तीन आदि संख्याको अन्तिम गच्छ सख्या एक रखकर परस्पर गुणा करनेपर कुल भंगसख्या आती है । आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने भंगसख्या निकालनेके लिए निम्न करण सूत्र बतलाया है
सव्वेपि पुन्वमंगा उवरिममगेसु एक्कमस्केसु ।
मेलतित्ति य कमतो गुणिदे उप्पज्जदे मंख्या ॥३६॥ अर्थ-पूर्वके सभी भग आगेके प्रत्येक मंगमे मिलते हैं, इमलिए क्रमसे गुणा करनेपर सख्या उत्पन्न होती है ।
उदाहरण के लिए णमोकार मन्त्रकी सामान्य पदसख्या ५ तथा विशेष पदसंख्या ११ तथा मात्राओं की संख्या ५८ को ही लिया जाता है। जिस