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मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन १३९ ३० व्यंजन, ३५ अक्षर इनपर-से विस्तार किया तो ३४+ ३० = ६४x ५= ३२०-३० = ६ लब्ध और १४ शेष । यह १४ सख्या गुणस्थान और मार्गणाकी है। अथवा ६४४ ११ = ७०४-३० = २३ लब्ध,१४ शेष । यही शेष सख्या गुणस्थान और मार्गणा है। नियम यह है कि समस्त स्वर और व्यजनोकी सख्याको सामान्य पद संख्यासे गुणा कर स्वरकी संख्याका भाग देनेपर शेष तुल्य गुणस्थान और मार्गणा अथवा समस्त स्वर और व्यंजनोकी सख्याको विशेष पद सख्यासे गुणा कर व्य जनोकी संख्याका भाग देनेपर शेष तुल्य गुणस्थान और मार्गरणाकी संख्या आती है। छह द्रव्य और छह कायके जीवोकी संख्या निकालनेके लिए यह नियम है कि समस्त स्वर और व्यजनोकी संख्या (६४) को व्यजनोको सख्यासे गुणा कर विशेष पद सख्याका भाग देनेपर शेष तुल्य द्रव्योकी तथा जीवोके कायकी सख्या अथवा समस्त स्वर और व्यजनोकी संख्याको स्वर संख्यासे गुणा कर सामान्य पद सख्याका भाग देनेपर शेष तुल्य द्रव्योकी तथा जीवोके कायकी सख्या आती है। यथा ६४४३० = १९२०-११ = १७४ लब्ध, ६ शेष, यही शेप तुल्य द्रव्य और कायकी सख्या है । अथवा ६४४ ३४ %3D२१७६ --५= ४३४ लब्ध, ६ शेष। यही शेष प्रमाण द्रव्य और कायकी सख्या है । इस महामन्त्रमे कुल मात्राएँ ५८ हैं । प्रथम पदके 'णमो भरिहवाणं' में = १+२+ + +२+२+२%3D११, द्वितीयपद 'णमो सिद्धाणं' में = १+२+१+२+ २ = ८, तृतीयपद 'णमो आइरियाणं' में = १+२+ +१+१+२+२= 11, चतुर्थपद 'णमो उवज्झायाणं' म = १+२+१+२+२+२ = १२, पंचमपद 'णमो लोए सन्चमाहणं' में% +२+२+२+२+१+२+२+२-१६, समस्त मात्राओका योग%3D ११+८+११+१२+१६ % ५८। इस विश्लेपणसे समस्त कर्म-प्रकृतियोका योग निकलता है। यह जीव कुल १४८ प्रकृतियोको बांधता है। मात्राएँ + स्वर + व्यजन+ विशेषपद +
१ सयुक्त पूर्व वर्णपर स्वराघात न हो तो चन्द-शास्त्र में उसे हल मानते हैं।