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मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
गति, चार कषाय, चौदह मागणा, चौदह गुण-स्थान, पांच अस्तिकाय, छह द्रव्य, वेसठ शलाका पुरुष आदि निहित हैं । स्वर, व्यंजन, पद आदि इस मन्त्रमे निहित हैं । स्वर, व्यजन, पद, अक्षर इनके सयोग, वियोग, गुणन आदिके द्वारा उक्त तथ्य सिद्ध किये जाते है । जिस प्रकार द्वादशाग जिनवाणीके समस्त अक्षर इस मन्त्रमे निहित हैं, उसी प्रकार इसमे उक्त सिद्धान्त भी । यद्यपि द्वादशाग जिन-वारणीके अन्तर्गत सभी तथ्य यों ही आ जाते है, फिर भी इनका पृथक् विचार कर लेना आवश्यक है। ___ इस मन्त्रमे [१] णमो अरिहंताण, [२] णमो सिद्धारणं, [३] णमो आइरियाण, [४] णमो उवज्झायाण, [५] णमो लोए सव्वसाहूणं ये पांच पद हैं । विशेषापेक्षया [१]णमो [२] अरिहताण [३] णमो [४] सिद्धाण [५] णमो [६] आइरियारणं [७] णमो [८] उवज्मायाण [९] णमो [१०] लोए [११] सव्वसाहूण ये ग्यारह पद है। अक्षर इसमें ३५, स्वर ३४, व्यंजन ३० हैं । इस आधारपर-से निम्न निष्कर्ष निकलते हैं । ३४ स्वर सख्या-मे से इकाई, दहाईके अकोको पृथक् किया तो ३ और ४ अक हुए । व्यंजनोमें ३० की संख्याको पृथक् किया तो, ३ और • हुए । कुल स्वर ३४ और व्यंजन ३० की सख्याके योगको पृथक् किया तो ३४ + ३० = ६४, ६ और ४ हुए। इस मन्त्र के अक्षरोकी सख्याको पृथक् किया तो ३ और ५ हुए । अत -
३४५ = १५ योग, ३+५% ८ कर्म, ५ -३% २ जीव और अजीव तत्व, ५-३ = १ लव्व मोर शेप २, मूल दो तत्त्व, अजीव कर्मके हटनेपर लव्धरूप शुद्ध जीव एक ।
स्वरोमे- ३४४ = १२ अविरति, ३+४ = ७ तत्त्व, ४-३%१ प्रधानताकी अपेक्षा जीव । पांच यह पचास्तिकाय । स्वर + व्यजन + अक्षर = ३४+३०+ ३५ = ९९, फल योग ९+ ९ = १८, इनसे योगान्तर १+८%3D ९ पदार्थ । ९९ : ३४ = २ लब्ध और ३१ शेष, ३+१% ४ गति, कषाय, विकथा विशेषापेक्षया ११ पद, सामान्यापेक्षया । ५,३४ स्वर,