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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
द्रव्यकर्मी निमित्तसे भावकर्म और भावकर्मके निमित्तसे द्रव्यकमं होते हैं । द्रव्य के मूल ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ये आठ भेद तथा अवान्तर १४८ भेद होते हैं । जिन हेतुओ से कर्म आत्मामे आते हैं, वे हेतु आस्रव हैं। मिध्यात्व, अविरति, प्रमाद, कपाय और योग ये पाँच आस्रव प्रत्यय - कारण है । जव यह जीव अपने आत्म-स्वरूपको भूलकर शरीरादि पर द्रव्योमे आत्मबुद्धि करता है और उनके समस्त विचार और क्रियाएँ शरीराश्रित व्यवहारोमे उलझी रहती हैं, मिथ्यादृष्टि कहा जाता है । मिथ्यात्वके कारण स्व-पर विवेक नही रहना, लक्ष्मभूत कल्याण - मार्गमे सम्यक् श्रद्धा नही होती । जीव अहकार और ममकारकी प्रवृत्तिके अधीन होकर अपनेको भूल, वाह्य पदार्थोंके रूपपर क्षुब्ध हो जाता है । मिथ्यात्वके समान आत्माके स्वरूपको विकृत करनेवाला अन्य कोई नही है । यह कर्मबन्धका प्रधान हेतु है ।
अविरति - चारित्रमोहका उदय होनेसे चारित्र धारण करनेके परि रणाम नही हो पाते । पाँच इन्द्रियो और मनको अपने वशमे न रखना तथा छह कायके प्राणियोकी हिंसा करना अविरति है । अविरतिके रहनेपर जीवकी प्रवृत्ति विवेकहीन होती है, जिससे नाना प्रकारके अशुभ कर्मोंका वन्य होता है ।
प्रमाद असावधानी रखना या कल्याणकारी कार्योंके प्रति आदर नही करना प्रमाद है । प्रमादी जीव पाँचो इन्द्रियोके विषयोमे लीन रहता है, स्त्री-कथा, भोजनकथा, राजकया और चोरकथा कहता- सुनता है; क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारो कषायोमे लीन रहता है एव निद्रा और प्रणयासक्त होकर कर्तव्य मार्गके प्रति आदरभाव नही रखता । प्रमादी जीव हिंसा करे या न करे, उसे असावधानी के कारण हिंसा
अवश्य लगती है ।
कपाय आत्मा के शान्त और निर्विकारी रूपको जो अशान्त और विकारग्रस्त बनाये उसे कपाय कहते हैं। ये कपायें ही जीवमे राग-द्वेपकी
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