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मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
इस महामन्त्रको उपलब्धिमें अन्तरायकर्मका क्षयोपशम भी एक कारण है । यत भोतरी योग्यता के प्रकट होनेपर हो इस महामन्त्रको उपलब्धि होती है ।
'क्व' यह नमस्कार कहाँ होता है ? इसका आधार क्या है ? इस प्रश्नका उत्तर यह है कि यह नमस्कार जीवमें, अजीवमें, जीव-अजीवमें, जीव- अजोवोमें, मजीव-जीवोमें, जीवों-मजीवोमें, जीवोमें मोर भजीवोमें कथंचिद्भेदात्मकता होनेके कारण होता है । नयोकी भिन्न-भिन्न दृष्टियाँ होनेके कारण उपर्युक्त आठ भंगोमें से कभी एक भग आधार, कभी दो भंग आधार, कभी तीन भंग आधार और कभी इससे अधिक भग आधार होते हैं ।
' कियत्कालं' - नमस्कार कितने समय तक होता है, इस प्रश्नका समाधान करते हुए बताया गया है कि उपयोगकी अपेक्षासे नमस्कारका उत्कृष्ट और जघन्य काल मन्तर्मुहूर्त है । कर्मावरण क्षयोपशमरूप लब्धिका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल ६६ सागर से अधिक होता है ।
'कतिविधो नमस्कार.' कितने प्रकारका नमस्कार होता है, इस प्ररूपणा में बताया गया है कि अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पांचो पदोके पूर्वमें णमो - नम शब्द पाया जाता है । अतः पाँच प्रकारका नमस्कार होता है । इस प्रकार इस प्ररूपणा-द्वारमें निर्देश, स्वामित्व, साधन, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्प- बहुत्वकी अपेक्षा भी वर्णन किया गया है ।
वस्तुद्वार - गुण-गुणो मे कथचिद्भेदाभेदात्मकता होनेसे अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पांचो परमेष्टी ही नमस्कार करने योग्य वस्तु हैं । व्यक्ति रत्नत्रयरूप गुणोको इसलिए नमस्कार करता है कि गुणोकी प्राप्ति उसे अभीष्ट होती है । मसार प्रटवोसे पार होनेका एकमात्र साघन रत्नत्रय है, मत गुणगुणी में भेदाभेदात्मकता होनेके कारण रत्नत्रय