________________
मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
·
१२५
किया जाता है । सबसे पहले यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि णमोकार मन्त्र क्या वस्तु है ? जीव है या अजीव ? जीव-अजीवमें भी द्रव्य है या गुण ? नैगम आदि नयोको अपेक्षा जीव हो णमोकार है; क्योंकि ज्ञानमय जीव होता है और णमोकार श्रुतज्ञानमय है । अतएव पंचपरमेष्ठोवाचक मोकारमन्त्र जीव है । इसकी रूपाकृति - शब्दोको अजीव कहा जा सकता है; पर भाव जो कि ज्ञानमय है, जीवस्वरूप है । द्रव्य और गुणके प्रश्नोंमें गुणोका समुदाय द्रव्य होता है तथा द्रव्य और गुणमें कथचित् भेदाभेदात्मक सम्बन्ध है, अतः णमोकार मन्त्र कर्याचित् द्रव्यात्मक और कथंचित् गुणात्मक है ।
-
यह नमस्कार किसको किया जाता है, इस प्रश्नका उत्तर यह है कि यह नमस्कार पूज्य - नमस्कार करने योग्योको किया जाता है । पूज्य जीव और अजीव दोनों हो सकते है । जीवमें अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु तथा अजीवमें इनको प्रतिमाएं नमस्कार्य होती है ।
'केन' किस प्रकार णमोकार मन्त्र की उपलब्वि होती है, इस प्ररूपणा में नियुक्तिकारने बताया है कि जबतक अन्तरगमें क्षयोपशमको वृद्धि नही होती है, इस मन्त्रपर आस्था नहीं उत्पन्न हो सकती है। कहा हैनाणावरणिजस्स य, दंसणमोहस्स जो खओवसमो । जीवमजीचे अट्ठसु मंगेसु य होइ सम्वत्थ ॥२८९३ ॥
G
अर्थात् - जीवको ज्ञानावरणादि आठो कर्मो से - मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण कमके क्षयोपशमके साथ मोहनीयकर्मका क्षयोपशम होनेपर णमोकार मन्त्रको प्राप्ति होती है । णमोकार मन्त्र श्रुतज्ञानरूप होता है और श्रुतज्ञान मतिज्ञानपूर्वक ही होता है, अत मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमके साथ, मोहनीय कर्मका क्षयोपशम भी होना आवश्यक है । क्योकि आत्मस्वरूप के प्रति आस्था मिथ्यात्व कर्मके अभाव में ही होती हैं । अनन्तानुarat क्रोध, मान माया और लोभके विसयोजन के साथ मिथ्यात्वका क्षय उपशम या क्षयोपशम होना इस मन्त्रकी उपलब्धिके लिए आवश्यक है ।