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मंगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन
ध्याता - ध्यान करनेवाला ध्याता होता है। आत्मविकासको दृष्टिसे ध्याता १४ गुणस्थानोमें रहनेवाले जीव है, अतः इसके १४ भेद हैं । पहले गुणस्थानमें आर्तध्यान या रौद्रध्यान ही होता है। चौथे गुणस्थानमें धर्मध्यान होता है।
ध्येय - ध्यानके स्वरूपका कथन करते समय ध्येयके स्वरूपका प्रायः विवेचन किया जा चुका है । ध्येयके चार भेद है - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । णमोकार मन्त्र नामध्येय है। तीर्थंकरोकी मूर्तियां स्थापनाध्येय है । मरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पंचपरमेष्ठी द्रव्यध्येय है और इनके गुण भावध्येय हैं। यो तो सभा शुद्धात्माएं ध्येय हो सकती है । जिस साध्यको प्राप्त करना है, वह साध्य ध्येय होता है ।। ___योगशास्त्रके इस सक्षिप्त विवेचन के प्रकाशमें हम पाते हैं कि णमोकारका योगके साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । योगको क्रियाओका इसो मन्त्रराजकी साधना करनेके लिए विधान किया गया है । जैनाम्नायमें प्रधान स्थान ध्यानको दिया गया है । योगके आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार-क्रियाएं शरीरको,स्थिर करती हैं। साधक इन क्रियाओके अभ्यासद्वारा णमोकार मन्त्रका साधनाके योग्य अपने शरीरको बनाता है। धारणा-द्वारा मनकी क्रियाको अधीन करता है । तात्पर्य यह है कि योगों - मन, वचन, कायको स्थिर करनेके लिए योगाभ्यास करना पड़ता है। इन तीनो योगोको क्रिया तभी स्थिर होती है, जब साधक मारम्मिक साधनाके द्वारा अपने को इस योग्य बना लेता है । इस विषयके स्पष्टीकरणके लिए गणितका गति-नियामक सिद्धान्त अधिक उपयोगी होगा । गणितशास्त्रमें आया है कि किसी भी गतिमान् पदार्थको स्थिर करनेके लिए उसे तीन लम्बसूत्रों-द्वारा स्थिर करना पडता है । इन तीन सूत्रोंसे आबद्ध करनेपर उसकी गति स्थिर हो जाती है । उदाहरणके लिए यों कहा जा सकता है कि वायुके द्वारा नाचते हुए बिजलीके वल्बको यदि स्थिर करना हो तो उसे तीन सम सूत्रोफे द्वारा आवद्ध कर देना होगा। क्योकि वायु या अन्य किसी भी प्रकारके वक्केको