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मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन १०९ परिग्रह इन पांचों पापोके सेवनमें आनन्दका अनुभव करना और इस आनन्दको उपलब्धिके लिए नाना तरहको चिन्ताएं करना रौद्रध्यान है ।
धर्मसे सम्बद्ध बातोंका सतत चिन्तन करना धर्मध्यान है । इसके चार भेद हैं - माज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय । जिनागमके अनुसार तत्त्वोंका विचार करना आज्ञाविचय, अपने तथा दूसरो. के राग, द्वेष, मोह आदि विकारोको नाश करनेका उपाय चिन्तन करना अपायविचय, अपने तथा परके सुख-दुख देखकर कर्मप्रकृतियोंके स्वरूपका चिन्तन करना विपाकविचय एव लोकके स्वरूपका विचार करना सस्थानविचय धर्मध्यान है। इसके भी चार भेद है - पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ
और रूपातीत । शरीर स्थिन आत्माका चिन्तन करना पिण्डस्थ ध्यान है। इसकी पांच धारणाएं बतायो गयो हैं - पार्थिवी, आग्नेयी, वायवी, जलीय और तत्त्वरूपवती।
पार्थिवी - इस धारणामें एक मध्यलोकके बराबर निर्मल जलका समुद्र चिन्नन करे और उसके मध्यमें जम्बू द्वीपके समान एक लाख योजन चौडा स्वर्णरगके क्मलका चिन्तन करे, इसको कणिकाके मध्यमें सुमेरुपर्वतका चिन्तन करे । उस सुमेरुपर्वतके कार पाण्डुक वनमें पाण्डु कशिला तथा उस शिलापर म्फटिकमणिके आसनका एव उस आसनपर पद्मासन लगाये ध्यान करते हुए अपना चिन्तन करे । इतना चिन्तन बार-बार करना पृथ्वो धारणा है।
आग्नेयी धारणा - उसी सिंहासनपर स्थिर होकर यह विचारे कि मेरे नाभि-कमलके स्थानपर मंतर ऊपरको उठा हुमा सोलह पत्तोका एक कमल है उसपर पोतररंगके अ आ इ ई उ ऊ ऋऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं आये सोलह स्वर अंकित हैं तथा बीचमे 'है' लिखा है। दूसरा कमल हृदयस्थानपर नाभिकमलके ऊपर आठ पत्तोका औंधा कमल विचारना चाहिए । इसे ज्ञानावरणादि आठ कर्मोंका क्मल कहा गया है । पश्चात् नाभिकमलके वोचमें 'ह' लिखा है, उसको रेफसे धुना निकलता