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________________ १३६ क महावीर युग की प्रतिनिधि कयाएँ ____ "बेटा । तू मुझे परेशान न कर। तेरे ऐसे प्रश्नो से मुझे दुख होता है।" पुत्र अपनी माता को कष्ट नहीं देना चाहता था, अत वह चुप हो गया । कोई प्रश्न उसने अब नही किया । किन्तु प्रश्न तो उसके हृदय मे कुंडली मारकर बैठ गया था—'मनुष्य क्यो मरता है ?' ज्यो-ज्यो कुमार इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयत्न करता, वह और भी उलझता चला जाता और प्रश्न का अटूट सिलसिला आगे बढ़ना ही जाता-क्या मनुष्य अमर नही हो सकता? क्या ऐसा कोई मार्ग ही नही कि मनुष्य अमर हो जाय ?" वालक धीरे-धीरे बडा होता रहा । प्रश्न उसके हृदय से नहीं निकला सो नही ही निकला। यौवन की अधी ऑधी मे भी वह भटका नही ओर प्रतिपल विचार करता रहा- 'मनुष्य क्यो मरता है ? मनुष्य अमृत क्यो नही हो सकता ?' एक बार भगवान अरिष्टनेमि उस नगरी मे पधारे। माता अपने पुत्र के साथ दर्शन करने गई। भगवान ने उपदेश दिया-और सहसा थावाकुमार को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया । भगवान की कृपा से उसने जान लिया कि मृत्यु को जीत कर अमृत होने का मार्ग कौनसा है ? माता की आज्ञा लेकर थावाकुमार साधना के उस अमृत-लोक की ओर चल पडा । दीक्षित होकर वह भगवान के साथ विचरण करने लगा। अब वह धर्म के अमृत-लोक मे था । वहाँ भला कैसा जन्म, कैसी मृत्यु ? -- थावापुत्र रास
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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