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कैसा जन्म,
कैसी
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किन्तु इस बार उसे रोने-धोने, चीखने की बडी ही दर्दनाक आवाजे सुनाई दी । आनन्द से झूमता उसका हृदय एकदम धक से रह गया । अनजाने ही उसकी आँखो से अश्रुधार बह निकली । वह भारी हृदय लेकर फिर अपनी माता के पास पहुँचा और पूछने लगा
“माँ | ये लोग रो क्यो रहे है ? मुझे अच्छा नही लगता । मुझे दुख होता है ।"
?
मृत्यु
"दुख की तो बात ही है बेटा । जो पुत्र उत्पन्न हुआ था न, वह चला गया । इसीलिए सब लोग दुखी होकर रो रहे हैं ।" - माता ने
समझाया ।
किन्तु वालक की जिज्ञासा और भी आगे वढी । उसने पूछा"वह लडका जो पैदा हुआ था कहाँ चला गया, माँ ?
भारी हृदय से माँ ने बताया -- " वह मर गया, बेटा । अब वह कभी लोटकर नही आएगा ।"
कुछ क्षण कुमार चुपचाप अपनी माँ के उदास चेहरे को देखता ओर विचार करता रहा | फिर बोला
"माँ ! क्या मैं भी मर जाऊँगा ?"
-
माता ने झट से उसके मुख पर हाथ रख दिया और कहा - " ऐसी वात नही करते बेटा ! जा, तू अपना खेल ।”
"नही माँ ' तू मुझे बता । मैं जाने विना मानूंगा नही । क्या मैं भी मर जाऊँगा ?"
माता जानती थी कि बालक हठी है । एक बार जो धुन इसे लगी सो लगी । सहज ही मानने वाला यह नही है । अत विवश होकर बोली"हॉ मेरे बेटे । सत्य यही है कि जो भी जन्म लेता है, उसे एक न एक दिन मरना ही पडता है ।"
कुमार फिर गभीर रहा। और फिर उसने प्रश्न किया
"माँ | क्या कोई ऐसा उपाय नही कि मैं मरु नही, और तुम्हे रोना भी न पड़े?"
भला कोई माता अपने ही पुत्र को, प्रश्नों का क्या उत्तर दे ? कहाँ तक उत्तर सकी
दे
अपने कलेजे के टुकडे को इन
वह
बेचारी इतना ही कह
?