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कैसा जन्म, कैसी मृत्यु ?
लोग कहते है होनहार विरवान के, होत चीकने पात । लोग ठीक ही तो कहते है । थावा पुत्र की जीवन-गाथा से लोगो द्वारा कही जाती यह वात शताश मे सही सिद्ध होती है ।
माता का नाम था थावा । अत पुत्र को नाम मिल गया थावापुत्र, या थावाकुमार।
बचपन से ही जिज्ञासु, विचारवान और गंभीर था वह । कोई भी नई वात देखता तो झट अपनी माता से प्रश्न करता-'माँ । यह कैसी बात है ? यह कैसे हुआ ? अब क्या होगा? क्या सदा ऐसी ही होता है ? क्या ऐसा ही होता रहेगा ?"
माता अपने होनहार विरवान को खूब जतन से सम्हालती और समझाती
_ "हां रे मेरे बेटे | ऐसा ही होता है। ऐसा ही होता रहता है। यह ससार है न, उसमे ऐसा ही होता रहेगा। जा तू, जाकर खेल । मुझे परेशान न कर । देख तो भला, मुझे अभी कितने सारे काम करने है ।"
बालक मन्तुष्ट हो जाता । वहल जाता । खेलने-कूदने लगता। आर फिर कुछ देर मे माता के पास आकर प्रश्नो की झडी लगा देता-"माँ । यह वमी वस्तु यह कहाँ से आ गई ? यह पहिले तो ऐसी नही थी? क्या यह हमेशा ऐनी दी रहेगी?"