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महावीर युग की प्रतिनिधि कयाएं एक वर्ष तक तीर्थंकर मल्लिकुमारी ने प्रचुर मात्रा मे दानादि देकर दीक्षा ग्रहण की। जैसा कि प्रत्येक तीर्थकर के साथ होता है, दीक्षा धारण करते ही उन्हे भी मन' पर्यवज्ञान उत्पन्न हुआ तथा कुछ ही समय बाद केवलज्ञान भी उत्पन्न हो गया । देवताओ ने उनका कैवल्य- कल्याण मनाया । राजकुमारी मल्लिकुमारी पहले तीर्थंकर मल्लिकुमारी हुई और फिर वे भगवान मल्लिनाथ हो गए। छहो पूर्वोक्त राजाओ ने उनसे दीक्षा ग्रहण की ।
चैत सुदी चतुर्थी के दिन भरणी नक्षत्र में समस्त कर्मों का क्षय कर भगवान मल्लिनाथ ने परम मुक्ति प्राप्त की ।
-ज्ञातासूत्र