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हंस का जीवित कारागार
१३१ उसो समय चुपचाप राजकुमारी आई। और चुपचाप ही उसने पुतली का ढक्कन खोल दिया ।
दुर्गन्ध, भयानक दुर्गन्ध से वातावरण असह्य हो उठा। राजाओ का दम घुटने लगा ओर वे वहाँ से भागने का मार्ग खोजने लगे।
उसी समय खिलखिलाती हुई राजकुमारी प्रकट हुई और बोली
"क्यो महानुभावो । क्या हो गया ? इतने आसक्त होकर इस पुतली को देख रहे थे. अब भागने का मार्ग खोजने लगे ?" __राजाओ ने उत्तर दिया
"हमारे तो प्राण निकले जा रहे है । दुर्गन्ध से दम घुट रहा है । हम कहाँ आ फैसे " "
अव राजकुमारी ने गम्भीरता से कहा___ “विचार करने की वात है। एक सोने की पुतलो मे प्रतिदिन केवल एक ग्रास अन्न ही डाला जाता है, और तब भी ऐसी स्थिति है। तब उस मनुष्य के शरीर की क्या हालत होगी जिसका निर्माण ही श्लेष्मा, वमन, पित्त, शुक्र, शोणित, मल, मूत्र इत्यादि से हुआ है ? अरे भाई, यह मनुष्य देह तो हस का जीवित कारागार है जोकि अपने समस्त वाह्य सौदर्य के बावजूद अनुचि का अक्षय भण्डार है।"
हो राजा विस्मय से राजकुमारी को देखते रह गए।
राजमारी उन्हे अलग स्थान पर ले गई और उसने उन्हे बताया कि वे सव कौन है ? किन प्रकार पूर्व भवो मे वे मित्र थे ? कैसे उन्होने मात्र दीक्षा ली थी, तप की आराधना की थी, जयन्त विमान मे उत्पन्न होने के बाद वे किस प्रकार भिन्न-भिन्न स्थानो पर राजा होकर उत्पन्न हुए थे। राजकुमारी ने उन्हे यह भी बताया कि तनिक-सा कपट आचरण करने के कारण ही उसे स्वय का न्त्रीवेद का वन्ध हुआ था और वह मलिकुमारी के रूप से उत्पन्न हुई थी।
राजाओ ने ये वचन सुने, उनकी सोई हुई आत्माओ ने करवट ला, उनके परिणामो ओर लेण्याओं में परिवर्तन हुआ। शुभ परिणाम आने से उन्हे जातिस्मरण ज्ञान हुआ । पूर्व भव की सभी बाते उन्हे याद आ गई ।
नव प्रसन्न थे । पुराने माथी फिर मिले थे । एक मत से, हर्पित हृदय मेमभी ने दीक्षा ग्रहण करने का शुभ निश्चय उसी क्षण कर लिया।