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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
राजा कुम्भ के दरवार मे छहो राजाओ के दूत जा पहुँचे । अपनेअपने राजाओ की उन्होने बढ चढकर प्रशंसा की । किन्तु राजा कुम्भ ने उनमे से किसी भी मांग को स्वीकार नही किया । निराश दूत लौट गए । अपने-अपने दूतो से यह निराशापूर्ण उत्तर सुनकर छहो राजा कुपित होकर, मिथिला पर चढाई करने के लिए चल पडे । उन सब की मम्मिलित सेना ने मिथिला को घेर लिया ।
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राजा कुम्भ ने बडी वीरता से उन छहो राजाओ से मंग्राम किया । किन्तु एक के विरुद्ध छह-छह राजाओ की सेना से वह लोहा लेता तो कब तक ? विवश होकर उसे अपनी राजधानी के नगर द्वार बन्द करके वंठना पडा । उसकी चिन्ता की कोई सीमा न रही ।
पाठक भूले न होंगे कि राजकुमारी मल्लिकुमारी अवधि ज्ञानी थी । वह सब कुछ जानती थी । उसे ज्ञात था कि ये छहो राजा उसके पूर्व भव के वे ही मित्र है | अत' वह उन्हे प्रतिबोध देना चाहती थी और सन्मार्ग की ओर प्रेरित करना चाहती थी ।
अपने पिता को चिन्तित देखकर उसने कहा
" पिताजी ! आप चिन्तित क्यो है ? उन छहो राजाओ की बुद्धि को ठीक मार्ग पर लाने का कार्य आप मुझ पर छोड दीजिए ।"
राजा जानते थे कि उनकी पुत्री विलक्षण है । फिर भी उन्हें विश्वास नही होता था कि अकेली राजकुमारी इन छह मदान्ध राजाओ से निवट सकेगी। किन्तु मार्ग भी कुछ सूझ नही रहा था। राजकुमारी ने पिता की चिन्ता को दूर करने के लिए कहा
"पिताजी । इन राजाओ का यह बल तो मात्र पाशविक बल है । इसका आधार अन्याय है और अनीति है | भला नीति, न्याय तथा विवेक के समक्ष वह वल कैसे टिक सकता है ? आप तनिक भी चिन्ता न करे ।”
राजा की अनुमति पाकर राजकुमारी ने उन छहो राजाओ को उस पुतली वाले महल मे बुलाकर अलग-अलग कमरो मे ठहरा दिया । बीच मे वह स्वर्ण - पुत्तलिका थी । उन मोहान्ध राजाओ ने जब उस पुतली को देखा तो वे रूप के लोभी उसे वास्तविक राजकुमारी समझ कर आँखें फाडफाड कर, मुख से. लार टपकाते हुए उसे निर्निमेप नयनो से देखते ही रह गए