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हस का जीवित कारागार
१२६ सुन्दर चित्र भी स्थान-स्थान पर अंकित करवाए । एक चित्रकार अत्यन्त कुशल व कलाप्रवीण था। किसी भी प्राणी के किसी भी एक मात्र अग को देखकर ही वह उसका सम्पूर्ण चित्र बना सकता था। उसने किसी प्रसंग मे राजकुमारी का केवल एक अंगूठा भर देखा था। उसी स्मृति और अपनी कला प्रवीणता के सहारे उसने एक स्थान पर राजकुमारी का सम्पूर्ण चित्र इतना सुन्दर अंकित कर दिया कि देखने वाले यही समझते कि राजकुमारी साक्षात् वहाँ खडी है।
राजकुमार ने जव वह चित्र देखा तो उसे चित्रकार के चरित्र पर सन्देह हुआ। उसके कोध का ठिकाना न रहा। उसने चित्रकार को तुरन्त फॉमी पर लटकाने का आदेश दे दिया। किन्तु अन्य चित्रकार वास्तविकता से परिचित थे। उन्होने विनय की
“राजकुमार | यह चित्रकार अपराधी नही है। यह तो अत्यन्त मेधावी है और कला की साधना इसने की है। राजकुमारी का एक अंगुष्ठ मात्र देखकर हो इसने यह चित्र बनाया है। आप इसे क्षमा करे।"
वात सुनकर राजकुमार ने दण्ड कम कर दिया। फॉसी न देकर चित्रकार का केवल अंगूठा काट कर देश से निकाल दिया।
वेचारा चित्रकार निर्वासित होकर रु देश पहुँचा । वहाँ हस्तिनापुर के राजा अदीनशन ने जव सारी घटना सुनी और राजकुमारी के सौदर्य का वर्णन सुना तो वह मोह के ऐसे आवेग मे आया कि उसी क्षण उसके दूत भी मिथिला के लिए दौड पडे ।
इसी प्रकार मिथिला मे उस समय चोखा नाम की एक परिवाजिका निवास करती थी । विपी थी। चारो वेदो की ज्ञाता थी। एक बार राजकुमारी से उसकी धर्म-चर्चा चली। किन्तु मल्लिकुमारी के सत्य ज्ञान के समक्ष परिवाजिका का ज्ञान असत्य ही ठहरा। वह खीझ उठी और राज्य छोटकर पाचाल देश जा पहुँची । वहाँ राजा जितशत्रु राज्य करता था। उसे अपने अन्त पुर का वडा अभिमान था। किन्तु प्रमंग-वश जव सन्यासिनी ने यह बताया कि उसकी स्थिति कूप-मडूक जैमो ही है और राजकुमारी मरिलकुमारी के समान लावण्यवती कोई कन्या इस भूतल पर नहीं है तो अन्य राजाओ की भाति उमने भी अपने दूत मिथिला के लिए रवाना कर दिए।