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________________ १२८ महावीर युग को प्रतिनिधि कथाएं "राजन् । मैंने अपने जीवन मे आज तक एक ही उत्तम वस्तु देखी है । इस पृथ्वी पर वैसी दूसरी नहीं है । और वह है मिथिलेश की राजकुमारी मल्लिकुमारी ।" बस, इसके बाद कैसा विलम्ब ? अंग देश का दूत भी मिथिला की ओर पवन वेग से चल पडा । उसी समय कुणाल देश मे श्रावस्ती नगरी मे रूपी नामक राजा राज्य करता था । अपने मंत्री से किसी प्रसंग मे उसने भी मल्लिकुमारी के रूप की प्रशमा सुनी । वह भी अन्य राजाओ की भॉति मल्लिकुमारी का पागल प्रेमी हो गया। उसके दूत भी राजकुमारी को मंगनी हेतु मिथिला की ओर चल पडे । काशी देश की वाराणसी नगरी मे राजा शंख की सभा जुडी थी । उस समय कुछ स्वर्णकार वहाँ उपस्थित हुए । राजा ने पूछा "आप कहाँ से आए है ? क्या चाहते है ?" उन स्वर्णकारो ने उत्तर दिया "राजन् । हम मिथिला के वासी है। राजा द्वारा निष्कासित होकर यहाँ आपकी शरण मे आए है ।” "आपके राजा ने आपको क्यो यह दण्ड दिया ?" _ "हमारा दुर्भाग्य, राजन् । राजकुमारी जितनी रूपवान है, उतने ही अद्भुत, देवताओ द्वारा प्रदान किए गए कानो के कुण्डल भी उनके पास है। उन कुण्डलो की सन्धि टूट गई। हम लोग उन्हे जोड न सके । भला देवताओ द्वारा दिए गए उन कुण्डलो को हम मनुष्य कैसे ठीक कर देते ? सो राजा कुपित हो गए।" "अच्छा, क्या राजकुमारी बहुत सुन्दर है ?" "राजन् । उनके रूप का क्या कहना ? वे तो कोई मानवी नही, साक्षात् देवी प्रतीत होती है । स्वर्णकारो द्वारा राजकुमारी के रूप का यह वर्णन सुनकर राजा शख का दूत भी मिथिला की ओर चल पडा । राजकुमारी का भाई था मल्लिदिन्न । वह कला-प्रेमी था। उसने एक सुन्दर महल बनवाया। उसे अनेक कलात्मक वस्तुओ से सजाया।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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