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________________ हस का जीवित कारागार १२७ चबूतरा हो जिस पर एक सुवर्ण प्रतिमा स्थापित की जाय जो पूर्णतया मेरे जैसी ही हो । उस सुवर्ण की पुतली के मस्तक पर एक छिद्र भी होना चाहिए जो कि ढक्कन से ढका रहे और दिखाई न दे । राजकुमारी के इस विचित्र आदेश का पालन तत्परता से किया गया । जव सब कुछ तैयार हो गया तब राजकुमारी ने यह नियम बना लिया कि भोजन से पूर्व वह एक ग्रास अन्न प्रतिदिन उस पुतली मे डाल देती। धीरे-धीरे सडे हुए अन्न के कारण उस पुतली मे से ढक्कन हटाए जाने पर घोर दुर्गन्ध आने लगो। उसी समय कोशल देश मे इक्ष्वाकु नामक राजा राज्य करता था। एक दिन नगर से वाहर नागदेव के उत्सव मे राजा ने वहाँ देवालय मे एक सुन्दर पुष्प-कन्दुक देखी। अपने मंत्री से उसने पूछा-“क्या ऐसी मनोहर कदुक तुमने और कही भी देखी है ?" मंत्री ने कहा “राजन् । एक बार मै मिथिला की राजकुमारी मल्लिकुमारी के वार्षिकोत्सव मे गया था। वहाँ मैंने एक कंदुक देखी थी। यह कंदुक उस कंदुक की तुलना मे नगण्य ही है। और वह राजकुमारी स्वयं तो इतनी रूपवान है कि उसके रूप का वर्णन ही अशक्य है।" । राजा का हृदय उसके वश मे न रहा। मल्लिकुमारी के अद्भुत रूप का उपभोग करने की तीव्र लालसा से उसका हृदय दग्ध हो गया। उसी क्षण उसने अपने अनुचर भेजकर मल्लिकुमारी की मंगनी की। उसी समय अग देश मे चम्पानगरी का राजा चन्द्रच्छाय था। उसके राज्य मे अर्हन नामक एक नीतिवान गृहस्थ वसता था । व्यापार हेतु वह दूर-दूर देशो की यात्रा किया करता था। एक वार ऐसे ही प्रसंग मे वह मिथिला भी हो आया था और वहाँ उमने मल्लिकुमारी को देखा था। एक बार विमी प्रसंग मे राजा ने अर्हन् से पूछा ___ "क्यो अर्हन | तुम तो देश-विदेश मे घूमते हो। तुमने विदेश मे काभी कोई अद्भुत वस्तु भी देखी है ?" अर्हन ने विनयपूर्वक उतर दिया
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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