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________________ १२६ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ भाँति ही वैराग्य भावना से प्रेरित होकर अपने पुत्र बलभद्र को राजा वना कर वे दीक्षित हो गए। उसके छहो मित्रो ने भी दीक्षा ग्रहण करली | एक वार उन सबने समान तप करने का निश्चय कर दो दिन का उपवास रखा । किन्तु महावल के मन मे यह विचार उठा कि वह अन्य मुनियो से अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करे । अतः दो दिन तक तो उन्होने यही भाव दर्शाया कि वे पारणा कर लेंगे, किन्तु उन्होने ऐसा किया नही । अन्य मुनियो ने अपने निश्चय के अनुसार ही दो दिन वाद पारणा कर लिया । महावल ने यह कपट आचरण किया । इसके फलस्वरूप उन्हे स्त्री-वेद का बन्ध हुआ । कालक्रमानुसार कठिन तपस्या करते हुए उसके उत्कृष्टतम परिणाम स्वरूप महावल ने तीर्थकर नाम कर्म का वन्ध किया । धीरे-धीरे सातो मुनियो का शरीर अपने धर्म के अनुसार कृश होता गया और अन्त मे वक्षार पर्वत पर जाकर संथारा ग्रहण करके उन्होने समाधि पूर्वक इस शरीर का त्याग किया । शरीर त्यागने के बाद वे सव जयन्त विमान मे उत्कृष्ट ऋद्धि के धारक देव बने । वत्तीस सागर की आयु समाप्त हुई और वे पुन मनुष्य जीवन मे आए । उनमे से महावल देव वहाँ से काल कर मिथिला के राजा कुम्भ की रानी प्रभावती की कुक्षि मे आए। रात्रि के अन्तिम प्रहर मे रानी ने जो चौदह स्वप्न देखे उससे तीर्थकर के उसके गर्भ मे आने की सूचना मिली । सारी नगरी इस समाचार से हर्षित हो गई । मास भी व्यतीत हुए । रानी ने एक शुभ कन्या को जन्म दिया । उसका नाम रखा गया मल्लिकुमारी, क्योकि उसके गर्भ में आने के समय से ही रानी को सुगन्धित पुष्प मालाएँ धारण करना वडा प्रिय हो गया था । वालिका धीरे-धीरे नवयुवती हो गई । वह अत्यन्त रूपवान थी और उसका हृदय पूर्ण निर्विकार था । उसे जन्म से ही अवधिज्ञान प्राप्त था । उसके प्रभाव से उसने अपने पूर्व भव के मित्रो की उत्पत्ति की बात जान ली थी । भविष्य की घटनाओ का ज्ञान रखने वाली मल्लिकुमारी ने एक बार मन्त्री को बुलाकर आज्ञा दी कि अशोक वाटिका मे एक सुन्दर महल बनवाया जाय । उसके बीचो वीच छह कमरे बनवाए जायें । कमरो के बीच मे एक
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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