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________________ ६० महाबीर युग की प्रतिनिधि कथाएं वीणा वजती रही , वीणा का आकर्षक और मधुर स्वर अश्वो ने मुना । उनके कानो को वह प्रिय लगा। उसी प्रकार अन्य पदार्थों ने उनकी आँखो को. नाक को, जिह्वा को और शरीर को आकृष्ट किया। अश्व आए। किन्तु सभी अश्व वहाँ ठहरे नहीं । कुछ ने देखा कि ऐसे शब्द, स्पर्श, रस. प. और गध का उन्होने पहले कभी अनुभव किया नही है । वे उनसे मावधान हो गए। अपने मन को उन्होने उस शब्द, स्पर्श, रस आदि मे आमक नहीं किया । उन्हे वैसा ही छोडकर वहाँ से बहुत दूर चले गए। __ जो अश्व वहाँ में नले गए वे स्वतन्त्र रहकर सुखपूर्वक चारागाहो में बिनग्ने रहे। मेर अन्यो का क्या हुआ ? आमक्ति का जो परिणाम होता है, वही परिणाम शेप अश्वो को भुगतना पठा- बबन, आजन्म बधन । वंधन ओर दुख । उम उमाट शब्द, स्पर्श, रम आदि में आकृष्ट तथा उनमें आसक्त होम वे उन ग भोग करने लगे और वहा फैले हुए जाल मे वे फंस गए । राजपुन्या ने उन्ह पकड लिया ओर कमकर बन्धना मे जकटकर अपने पोत पर उन्हें लादकर वे हस्तिशीपं नगर को लौट गए। कल तक सुखपूर्वक, स्वतन्त्र रहकर विचरण करने वाले ये अश्व, ब्द, स्पर्श, म. म्प और गध मे आमक्त होकर आज पराधीन हो गए । दग्निगीर्ष नगर पहुँच कर व्यापारिया तथा गजाम्पो ने गजा को देव नेट शिा । राजा उन उच्च जाति के अध्वा को पारणी मे नान या। अपने रखवालो को बुनाकर उसने आदेश दिया --- न जाती अन्दा को शामिन कगे। उन्हें विनीत सग।' गत श्री आनानुसार उन अग्बा का गिक्षित किया जान नगा 'मुग का आनाधर नार बायका झाग बाधकर, सर बाबर, मटा
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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