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________________ द्वीप के अश्व की आवश्यकता हो वह ले लो। जितने भी कर्मचारियो को साथ लेना हो, ले लो, तथा अन्य साधन भी जो कुछ चाहिए हो, वे भी ले लो, किन्तु शीघ्र ही वे अश्व लेकर यहाँ लौटो।" "जैसी आज्ञा, राजन् ?--कहकर व्यापारियो ने विनयपूर्वक राजाज्ञा को शिरोधार्य किया और अपने स्थान पर लौट आए। राजा की आज्ञा के पालन मे क्या विलम्ब ? व्यापारी तैयार होने लगे। राजपुरुष प्रस्तुत होने लगे। गाडियाँ तैयार की गयी । पोत तथा नौकाएं तैयार कर ली गयी। राजपुरुषो ने अश्वो को संगीत से आकर्षित करने के लिए बहुत-सी वीणाएँ भी ले ली। इसके अतिरिक्त राजपुरुषो ने चक्षु इन्द्रिय को प्रिय लगने वाले बहुत से पदार्थ, घ्राणेन्द्रिय तथा स्पर्शेन्द्रिय को प्रिय लगने वाले अनेक पदार्थ, इसीप्रकार अन्य सभी इन्द्रियो को आकर्षित करने वाले नाना प्रकार के पदार्थ भी गाडियो मे भर लिए । इस प्रकार पूरी तैयारी कर ली गई । उन अश्वो को लुभाकर जाल मे फंसाने का कोई भी साधन छोडा नही गया। शब्द, स्पर्श, रम, रूप और गन्ध के उन सब उत्कृष्ट पदार्थों को लेकर वे व्यापारी तथा राजपुरुष पोत मे सवार होकर कालिक द्वीप की ओर चल पडे । अनुकूल वायु के कारण शीघ्र ही वे उस द्वीप मे पहुँच गए । लंगर डालकर भोजनादि से निवृत्त होकर, कुछ विश्राम करने के उपरान्त वे उन अश्वो को अपने जाल में फंसाने का उपक्रम करने लगे । वे लोग उस स्थान पर पहुँचे जहाँ वे अश्व सोते तथा लोटते थे । वहाँ जाकर उन्होने जाल बिछा दिया। वीणा तथा विचित्र वीणा को वे बडी मधुरता से वजाने लगे। इसी प्रकार जहाँ-जहाँ भी वे अश्व सोते तथा लोटते थे. वहां उन्होंने वे सभी पदार्थ जो अश्वो की विभिन्न इन्द्रियो को आकर्षित करने वाले थे. विखेर दिए। स्थान-स्थान पर उन्होने खड्डे खोद दिए और जहाँ पर यह मामती फैलाई गई थी उस स्थान पर जाल विकार उनके आमपान छिपकर वैठ गए।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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