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________________ महावीर युग को प्रतिनिधि कथाएँ ___ अश्वो ने जव उन लोगो को देखा ओर मनुष्यो की अपरिचित गन्ध को मुंघा तो वे पलक झपकते ही सरपट दौडकर कई योजन दूर निकल गए। ___ व्यापारी अपना एकत्र किया हुआ स्वर्ण तथा रत्न इत्यादि अपनी नौकाओ मे भर कर घर की ओर लौट चले। हस्तिशीपं नगर पहुँच कर उन व्यापारियो ने अपने राजा कनककेतु को बहुत मी बहुमूल्य भेट दी। राजा प्रसन्न हुआ ओर उसे जिज्ञासा भी हुई । उसने पूछा “देवानुप्रियो । तुम लोग दूर-दूर के देशो मे घूमते हो । अनेक ग्राम और नगर देखते हो। लवण समुद्र को भी अनेक बार पार कर चुके हो। ग्या तुमने कभी कही कोई विचित्र बात भी देखी ?" व्यापारियों ने विचार कर उत्तर दिया "राजन् । यह मत्य है कि हम अनेको ग्रामो और नगरो मे घूमते । अनेर वस्तु हमारे देखने में आती है। किन्तु जितने स्थान हमने देखे है, उनमें से सबसे अद्भुत म्यान जो हमने देखा वह है कालिक द्वीप। यह होप मोने-चादी तया रन्नो की खानो से तो भरा ही है, किन्तु उस द्वीप मे हमने एक अनोखी वस्तु जो देखी वह है वहाँ के अश्व ।' "गजन् । उन अश्वो के सौंदर्य का वर्णन करना हमारी शक्ति मे नहीं है । वे नीले रंग के है। प्रेमी उत्तम जाति के अश्व हमने अन्यत्र कही नहीं देखे । अश्व क्या है, वे तो मानो चलती-फिरती विजलिया ही है । आपके मनान प्रतापी नरेश के पास ऐसे अश्व होने चाहिए।" सुन्दर और उत्तम जाति के अब किसी भी वीर राजा के लिT गारव की बात होते ह । गजाओ को अच्छे अश्व प्रिय भी होते है । अन उन व्यापारियों ने कालिकोप के उन नोल वर्ण अश्वा के विषय मे जानकर गजा वनवे उन्हें प्राप्त करने के लिए अधीर हा गया । उसने तुरल नाद दिना देवानुप्रिती । तुम लोग मेरे कमचारियों को माय लेनादर गोत्र मत बार मे उन अद्भुत अम्बा को कर आओ। जितने भी धन
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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