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द्वीप के अश्व वाँधकर, चौकडी चढाकर, तोवरा चढाकर, लगाम लगाकर, खस्सी करके, नेला-प्रहार करके, चाबुको से पीटकर, तथा चमडे के कोडो से मार-मारकर उन्हे विनीत किया गया ।
तुच्छ सासारिक पदार्थों मे आसक्त होने का यह भयानक परिणाम उन अश्वो को भोगना पड़ा।
प्रत्येक प्राणी के लिए यही बात सत्य है। विभिन्न इन्द्रियो मे प्राणी की आसक्ति जिस प्रकार अन्त मे दु ख का कारण बनती है यह अनेक उदाहरणो से जाना-समझा जा सकता है
सुन्दर शब्द सुनकर कानो को सुख मिलता है। किन्तु इसी श्रवणेन्द्रिय को न जीतने का दुष्परिणाम भी देखिए-पारिधी के पीजरे मे एक तीतर होता है । उस तीतर को आवाज को सुनकर वन के स्वाधीन तीतर अपने स्थान से निरन्तर उसके समीप आते है और पारिधी के जाल मे फंस जाते है।
__ इसी प्रकार चक्षु इन्द्रिय के वशीभूत और रूप मे आसक्त बनने वाले पुरुष स्त्रियो के साथ आनन्द मनाते है, किन्तु चक्षु-इन्द्रिय के वशीभूत होने का ही परिणाम है कि पतंगा ज्वाला मे जा पडता है।
औषधि की गंध से आकृष्ट होकर सर्प अपने विल से निकल कर सपेरे के हाथ मे पड़ जाता है।
रसनेन्द्रिय को वश मे न रखने के परिणामस्वरूप मछली पकड ली जाती है और स्वयं ही दूसरों का भोजन बन जाती है।
स्पर्शेन्द्रिय को वश मे न रख पाने के कारण ही शक्तिशाली मस्त गजराज को अपने मम्नक मे लोहे के तीक्ष्ण अंकुश का प्रहार सहन करना पडता है।
तात्पर्य यह कि हमे अपनी इन्द्रियो को वश में रखना चाहिए । इन्द्रियो का स्वभाव आमक्त होना है। हमे सयम द्वारा उन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियो को वश मे रखते है, स्वयं उनके ही वश मे नही होते, उन्हे विषयो के लिए हाय-हाय करते हुए नहीं मरना पडता । उस प्रकार वे वशार्तमरण से बच जाते है ।